रविवार, 22 सितंबर 2013

मुट्ठी भर यवन और चुटकी भर अंग्रेजों द्वारा हजार वर्ष तक भारत्वर्ष को परतंत्र अर्थात गुलाम बनाने का राज

मुट्ठी भर यवन और चुटकी भर अंग्रेजों द्वारा हजार वर्ष तक भारत्वर्ष को परतंत्र अर्थात गुलाम बनाने का राज

यह कितनी आश्चर्यजनक बात है कि मुट्ठी भर यवन लुटेरे तथा चुटकी भर अंग्रेजी बनिया भारत के करोड़ों लोगों को लगभग एक हजार वर्ष तक गुलाम बनाए रखने आखिर कैसे सफल हो गए?

इस सम्बन्ध में इतिहास की एक रोचक पर सत्य घटना पर ध्यान से गूढ़ चिंतन करने मात्र से इस रहस्य पर से पर्दा हट सकता है। यवन लुटेरों के एक सरदार ने लगातार अनेक वर्षों से लुटेरों के धंधे से थककर  अपने सैनिकों की एक बैठक बुलाकर उन्हें दो-दो की संख्या में चारों दिशाओं में जाकर यह पता लगाने का काम सौंपा कि कौन सा राज्य अति कमजोर है, जिसे जीतकर वे वहाँ की सत्ता की बागडोर अपने हाथों में लेकर अपने राज्य स्थापित कर लुटेरों का धंधा छोड़ सकें।

कुछ समय पश्चात लौटकर उन सैनिकों ने अपनी अपनी आपबीती सुनाई। खैबर घाटी के पार से लौटे सैनकों ने बताया कि जब वे एक दोपहर को एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे तो उन्होंने अपने घोड़ों को चारा चरने हेतु छोड़ दिया था। घोड़े चारा चरते-चरते एक किसान के खेत में घुसकर उसकी फसल को चरने लगे। उस खेत के किसान की नजर घोड़ों पर पड़ते ही उसने घोड़ों को अपने खेत के बाहर कर दिया। घोड़े उस खेत से निकलकर पड़ोसी किसान के खेत में घुस गए जो उस समय अपने खेत में मौजूद नहीं था। उस खेत में घोड़ों ने भरपेट फसल को चरा। पड़ोसी किसान देखता रहा पर उसने घोड़ों को पड़ोसी किसान के खेत से बाहर निकालने आवाज भी नहीं लगाई।

इस घटना से उसने इस देश के लोगों के चरित्र का पता लगा लिया कि उन्हें केवल अपने हितों की चिंता रहती है। पड़ोसी को संकट से उबारने का विचार भी उनके मन में कभी नहीं आता है। इसलिए ऐसे देश पर धावा बोलकर आसानी से अपना राज्य स्थापित किया जा सकता है और बार में धीरे-धीरे अपने साम्राज्य में वृद्धि भी की जा सकती है। यवन लुटेरों के सरदार ने धावा बोला और एक कमजोर राज्य पर अपनी सत्ता स्थापित करने में सफल भी हुआ। उसके बाद धीरे-धीरे पूर्व दिशा में बढ़ते-बढ़ते दिल्ली तक पहुँच गया और खुद को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया। यह सुल्तान और कोई नहीं बल्कि बाबर था जिसने दिल्ली की सल्तनत पर पाँच पीढ़ियों तक एक छत्र राज्य किया।

इस प्रकार यह ऐतिहासिक सत्य आज हमारे सामने है कि कुछ मुट्ठी भर यवन लुटेरे हम करोड़ों भारतवासियों को सदियों तक गुलाम बनाये रखने में आखिर कैसे सफल हुए? हम इस बात की भी चिंता करें कि क्या हमारे चरित्र में कुछ परिवर्तन हुआ है अथवा नहीं? या फिर हमारा चरित्र कुत्ते की पूँछ की तरह ठीक वैसा ही है जैसा कि सदियों पहले था और जिसका हमे क्या-क्या खामियाजा उठाया है, उसका गवाह हमारा इतिहास है। यह इतिहास किसी परी कथा का उपन्यास नहीं बल्कि एक चेतावनी है जिस पर कोई ध्यान न देने पर अंजाम भुगतने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।

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