गुरुवार, 12 सितंबर 2013

ऐसे ग्रह व लोक जहाँ जीवन है

ऐसे दूसरे ग्रह व लोक जहाँ जीवन है

हमारे पुरातन शास्त्रों में ऐसे ग्रह व लोक के विवरण अंकित मिलते हैं जिन दूसरे ग्रह व लोक में जीवन है.
आज के वैज्ञानिक दुसरे ग्रहों पर सभ्यता की निशानियाँ ढूंढ़ रहें है। पर
अभी सफलता बहुत दूर है। हमारे सबसे नज़दीक चाँद है ; वहां पर
भी अभी सुगमता से नहीं जाया जा सकता। फिर हमारे पडोसी ग्रह शुक्र
और मंगल पर जाना तो हमें अभी तक नहीं आया। पर भारतीय ये जानते थे।
उनका दुसरे लोक के लोगों से संपर्क था , आना जाना था। तभी तो ग्रंथों में
सात लोकों का उल्लेख मिलता है। देव और दानवों के किस्से है।राजा बलि,
जो कहते है
अभी भी जीवित है और साल में एक बार पृथ्वी पर आते है , पाताल लोक में
रहते है।
पर ये मुर्ख विदेशी आक्रमणकारी आये और इन्होने हमारे सारे ग्रन्थ खराब
कर दिए , शिक्षा व्यवस्था बंद करा दी और हमें अज्ञान के अंधकार में
धकेल दिया।
खुद अभी भी सब खोज रहें है।ये सब हमारे ग्रंथों में हज़ारों वर्ष पहले
ही वर्णित है। आज विज्ञान कहता है की पृथ्वी और अन्य ग्रह स्पेस में है।
हमारे ग्रंथों में कहा है पृथ्वी "शेष" ने धारण करी है। शेष यानी खाली स्थान।
सात लोक नीचे हैं -
१. तल, २. अतल, ३. वितल, ४. तलातल, ५. रसातल, ६. महितल, ७.
पाताल।
सात लोक ऊपर - भू, भुवः, स्व, मह, जन, तप, सत्य से सात ऊर्ध्व लोक
हैं।
परन्तु जिनमें न श्रद्धा है, न धर्म है, शास्त्र विरुद्ध जो चलते हैं वो नर्क
लोक को जाते हैं। और यह नर्क लोक पृथ्वी से नीचे, जल के ऊपर दक्षिण
दिशा में हैं।
पुराणों अनुसार सात लोक को मूलत: दो लोक में विभाजित किया गया हैं-
1 कृतक लोक और 2.अकृतक लोक। कृतक लोक में ही प्रलय और
उत्पत्ति का चक्र चलता रहता है अकृतक लोक समय और स्थान शून्य है।
सप्त लोक का वर्णन : सात लोक हैं जिसमें से तीन लोक 1.भू लोक
(धरती), 2.भुवर्लोक (आकाश), 3.स्वर्लोक (अंतरिक्ष) में ही प्रयल
होता है, जबकि 4.महर्लोक, 5.जनलोक, 6.तपलोक और 7.सत्यलोक-
उक्त 4 लोक प्रलय से अछूते रहते हैं।
इनमें भी जो 'महर्लोक' हैं वह जनशून्य अवस्था में रहता है जहा आत्माएं
स्थिर रहती हैं, यहीं पर महाप्रलय के दौरान सृष्टि भस्म के रूप में विद्यमान
रहती है। यह लोग त्रैलोक्य और ब्रह्मलोक के बीच स्थित है।
ब्राह्मांड का स्वरूप : यह ब्रह्मांड अंडाकार है। यह ब्रह्मांड जल या बर्फ
और उसके बादलों से घिरा हुआ है। इससे जल से भी दस ‍गुना ज्यादा यह
अग्नि तत्व से ‍आच्छादित है और इससे भी दस गुना ज्यादा यह वायु से
घिरा हुआ माना गया है।
वायु से दस गुना ज्यादा यह आकाश से घिरा हुआ है और यह आकाश
जहाँ तक प्रकाशित होता है वहाँ से यह दस गुना ज्यादा 'तामस अंधकार' से
घिरा हुआ है और यह तामस अंधकार भी अपने से दस गुना ज्यादा महत्तत्व
से घिरा हुआ है जो असीमित, अपरिमेय और अनंत है। उस अनंत से ही पूर्ण
की उत्पत्ति होती है और उसी से उसका पालन होता है और अंतत: यह
ब्रह्मांड उस अनंत में ही लीन हो जाता है।
इसे इस तरह समझें : अनंत महत्तत्व से घिरा 'तामस अंधकार' और उससे
ही घिरे 'आकाश' को स्थान और समय कहा गया है। इससे ही दूरी और समय
का ज्ञान होता है। आकाश से ही वायुतत्व की उत्पत्ति होती है। वायु से
ही तेज अर्थात अग्नि की और अग्नि से जल, जल से पृथ्वी की सृष्टि हुई।
इस धरती पर जो जीवन है वह खुद धरती और आकाश का है।
सृष्टि का विभाजन या भेद :
(A) कृतक लोक :
कृतक त्रैलोक्य जिसे त्रिभुवन या मृत्युलोक भी कहते हैं। इसके बारे में
पुराणों की धारणा है कि यह नश्वर है, कृष्ण इसे परिवर्तनशील मानते हैं।
इसकी एक निश्चित आयु है। उक्त त्रैलोक्य के नाम हैं- भूलोक, भुवर्लोक,
स्वर्गलोक। यही लोक पाँच तत्वों से निर्मित है- आकाश, अग्नि, वायु, जल
और जड़। इन्हीं पाँच तत्वों को वेद क्रमश: जड़, प्राण, मन, विज्ञान और
आनंदमय कोष कहते हैं।
(1)भूलोक : जितनी दूर तक सूर्य, चंद्रमा आदि का प्रकाश जाता है, वह
पृथ्वी लोक कहलाता है, लेकिन भूलोक से तात्पर्य जिस भी ग्रह पर पैदल
चला जा सकता है।
(2)भुवर्लोक : पृथ्वी और सूर्य के बीच के स्थान को भुवर्लोक कहते हैं।
इसमें सभी ग्रह-नक्षत्रों का मंडल है।
(3)स्वर्गलोक : सूर्य और ध्रुव के बीच जो चौदह लाख योजन का अन्तर है,
उसे स्वर्गलोक कहते हैं। इसी के बीच में सप्तर्षि का मंडल है।
(B) अकृतक लोक :
जन, तप और सत्य लोक तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं। अकृतक त्रैलोक्य
अर्थात जो नश्वर नहीं है अनश्वर है। जिसे मनुष्य स्वयं के सद्कर्मों से
ही अर्जित कर सकता है। कृतक और अकृतक लोक के बीच स्थित है
'महर्लोक' जो कल्प के अंत के प्रलय में केवल जनशून्य हो जाता है, लेकिन
नष्ट नहीं होता। इसीलिए इसे कृतकाकृतक लोक कहते हैं।
(4)महर्लोक : ध्रुवलोक से एक करोड़ योजन ऊपर महर्लोक है।
(5)जनलोक : महर्लोक से बीस करोड़ योजन ऊपर जनलोक है।
(6)तपलोक : जनलोक से आठ करोड़ योजन ऊपर तपलोक है।
(7)सत्यलोक : तपलोक से बारह करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक है।
जिनके घर में यज्ञ नहीं होता उनके सात लोक नष्ट हो जाते हैं |
सन्ध्या के मन्त्रों में शरीर के सात अंगों का वर्णन:
ओ३म् भू: पूनातु शिरसि |
ओ३म् भुव: पूनातु नेत्रयो:
ओ३म् स्व: पूनातु कण्ठे|
ओ३म् मह: पूनातु हृदये |
ओ३म् जन: पुनातु नाभ्याम |
ओ३म् तप: पुनातु पादयो|
ओ३म् सत्यम् पुनातु पुन: शिरसि |
ओ३म् खं ब्रह्म पुनातु सर्वत्र |
यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे
ब्रह्माण्ड के सात लोक:
१. पृथ्वी
२. वायु
३. अन्तरिक्ष
४. आदित्य
५. चन्द्रमा
६. नक्षत्र
७. ब्रह्म लोक
ये ही लोक हैं जिनमें प्राणी रहा करता है | परन्तु यज्ञ न करने अथवा देव
ऋण से उऋण न होने वाले जिस लोक में भी जायेंगे वह उनके लिए
शान्ति का स्थान ना होगा| सातवें ब्रह्म लोक में
तो अशुभकर्मी जा ही नहीं सकते |

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