गुरुवार, 12 सितंबर 2013

भारतीय नारी अदम्य साहस,ज्ञान और अध्यात्म की प्रतीक

भारतीय नारी अदम्य साहस,ज्ञान और अध्यात्म की प्रतीक

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व जब दुनिया की अन्य देशों की नारियां नग्न हो जानवरो की तरह घूमती थी और उन्हें डाईन कहकर प्रताड़ित कर मार दिया जाता था , तब भारतवर्ष की महान नारियाँ राजाओ के साथ सिहासन पर बैठकर शासन के महत्वपूर्ण फैसले लिया करती थी , तब भारतवर्ष की महान नारी लीलावती और गार्गी के रूप मे गणित और विज्ञान मे अपना परचम फहरा रही थी ।
मुगलो के आने के पहले तक भारत मे नारिया अपने परम उत्कर्ष पर थी , परन्तु मुगलो की बर्बरता और अंग्रेजों की अश्लीलता ने उन्हे वासना के चरम पर पहुंचा दिया है।
वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं|
वेदों में स्त्रियों की शिक्षा- दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और
सामाजिक भूमिका का जो सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य
किसी धर्मग्रंथ में नहीं है| वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और देश
की शासक, पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं|
वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय| वेदों में
नारी को ज्ञान देने वाली, सुख – समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली,
देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी, उषा- जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक
आदर सूचक नाम दिए गए हैं|
वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है – उसे
सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन
की बात कही गई है| वैदिक काल में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर
रणक्षेत्र में भी जाती थी| जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई
थी| कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक
कदम आगे ही रखते हैं|
अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं – अपाला, घोषा, सरस्वती,
सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति- दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा,
आत्रेयी आदि |
तथापि, जिन्होनें वेदों के दर्शन भी नहीं किए, ऐसे कुछ रीढ़ की हड्डी विहीन
बुद्धिवादियों ने इस देश की सभ्यता, संस्कृति को नष्ट – भ्रष्ट करने
का जो अभियान चला रखा है – उसके तहत वेदों में
नारी की अवमानना का ढ़ोल पीटते रहते हैं |
आइए, वेदों में नारी के स्वरुप की झलक इन मंत्रों में देखें -
अथर्ववेद ११.५.१८
ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और
विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है | यह सूक्त
लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है |
कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें |
अथर्ववेद १४.१.६
माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और
विद्याबल का उपहार दें | वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें |
जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य
स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और
भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने – कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से
विवाह करे |
अथर्ववेद १४.१.२०
हे पत्नी ! हमें ज्ञान का उपदेश कर |
वधू अपनी विद्वत्ता और शुभ गुणों से पति के घर में सब को प्रसन्न कर दे |
अथर्ववेद ७.४६.३
पति को संपत्ति कमाने के तरीके बता |
संतानों को पालने वाली, निश्चित ज्ञान वाली, सह्त्रों स्तुति वाली और
चारों ओर प्रभाव डालने वाली स्त्री, तुम ऐश्वर्य पाती हो | हे सुयोग्य
पति की पत्नी, अपने पति को संपत्ति के लिए आगे बढ़ाओ |
अथर्ववेद ७.४७.१
हे स्त्री ! तुम सभी कर्मों को जानती हो |
हे स्त्री ! तुम हमें ऐश्वर्य और समृद्धि दो |
अथर्ववेद ७.४७.२
तुम सब कुछ जानने वाली हमें धन – धान्य से समर्थ कर दो |
हे स्त्री ! तुम हमारे धन और समृद्धि को बढ़ाओ |
अथर्ववेद ७.४८.२
तुम हमें बुद्धि से धन दो |
विदुषी, सम्माननीय, विचारशील, प्रसन्नचित्त
पत्नी संपत्ति की रक्षा और वृद्धि करती है और घर में सुख़ लाती है |
अथर्ववेद १४.१.६४
हे स्त्री ! तुम हमारे घर की प्रत्येक दिशा में ब्रह्म अर्थात् वैदिक ज्ञान
का प्रयोग करो |
हे वधू ! विद्वानों के घर में पहुंच कर कल्याणकारिणी और सुखदायिनी होकर
तुम विराजमान हो |
अथर्ववेद २.३६.५
हे वधू ! तुम ऐश्वर्य की नौका पर चढ़ो और अपने पति को जो कि तुमने
स्वयं पसंद किया है, संसार – सागर के पार पहुंचा दो |
हे वधू ! ऐश्वर्य कि अटूट नाव पर चढ़ और अपने पति को सफ़लता के तट
पर ले चल |
अथर्ववेद १.१४.३
हे वर ! यह वधू तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है |
हे वर ! यह कन्या तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है | यह बहुत काल तक
तुम्हारे घर में निवास करे और बुद्धिमत्ता के बीज बोये |
अथर्ववेद २.३६.३
यह वधू पति के घर जा कर रानी बने और वहां प्रकाशित हो |
अथर्ववेद ११.१.१७
ये स्त्रियां शुद्ध, पवित्र और यज्ञीय ( यज्ञ समान पूजनीय ) हैं, ये
प्रजा, पशु और अन्न देतीं हैं |
यह स्त्रियां शुद्ध स्वभाव वाली, पवित्र आचरण वाली, पूजनीय,
सेवा योग्य, शुभ चरित्र वाली और विद्वत्तापूर्ण हैं | यह समाज को प्रजा,
पशु और सुख़ पहुँचाती हैं |
अथर्ववेद १२.१.२५
हे मातृभूमि ! कन्याओं में जो तेज होता है, वह हमें दो |
स्त्रियों में जो सेवनीय ऐश्वर्य और कांति है, हे भूमि ! उस के साथ हमें
भी मिला |
अथर्ववेद १२.२.३१
स्त्रियां कभी दुख से रोयें नहीं, इन्हें निरोग रखा जाए और रत्न, आभूषण
इत्यादि पहनने को दिए जाएं |
अथर्ववेद १४.१.२०
हे वधू ! तुम पति के घर में जा कर गृहपत्नी और सब को वश में रखने
वाली बनों |
अथर्ववेद १४.१.५०
हे पत्नी ! अपने सौभाग्य के लिए मैं तेरा हाथ पकड़ता हूं |
अथर्ववेद १४.२ .२६
हे वधू ! तुम कल्याण करने वाली हो और घरों को उद्देश्य तक पहुंचाने
वाली हो |
अथर्ववेद १४.२.७१
हे पत्नी ! मैं ज्ञानवान हूं तू भी ज्ञानवती है, मैं सामवेद हूं तो तू ऋग्वेद है |
अथर्ववेद १४.२.७४
यह वधू विराट अर्थात् चमकने वाली है, इस ने सब को जीत लिया है |
यह वधू बड़े ऐश्वर्य वाली और पुरुषार्थिनी हो |
अथर्ववेद ७.३८.४ और १२.३.५२
सभा और समिति में जा कर स्त्रियां भाग लें और अपने विचार प्रकट करें |
ऋग्वेद १०.८५.७
माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और
विद्याबल उपहार में दें | माता- पिता को चाहिए कि वे
अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो |
ऋग्वेद ३.३१.१
पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से
उत्तराधिकारी है |
ऋग्वेद १० .१ .५९
एक गृहपत्नी प्रात : काल उठते ही अपने उद् गार कहती है -
” यह सूर्य उदय हुआ है, इस के साथ ही मेरा सौभाग्य भी ऊँचा चढ़
निकला है | मैं अपने घर और समाज की ध्वजा हूं , उस की मस्तक हूं | मैं
भारी व्यख्यात्री हूं | मेरे पुत्र शत्रु -विजयी हैं | मेरी पुत्री संसार में
चमकती है | मैं स्वयं दुश्मनों को जीतने वाली हूं | मेरे पति का असीम यश है
| मैंने वह त्याग किया है जिससे इन्द्र (सम्राट ) विजय पता है |
मुझेभी विजय मिली है | मैंने अपने शत्रु नि:शेष कर दिए हैं | ”
वह सूर्य ऊपर आ गया है और मेरा सौभाग्य भी ऊँचा हो गया है | मैं
जानती हूं , अपने प्रतिस्पर्धियों को जीतकर मैंने पति के प्रेम को फ़िर से
पा लिया है |
मैं प्रतीक हूं , मैं शिर हूं , मैं सबसे प्रमुख हूं और अब मैं कहती हूं
कि मेरी इच्छा के अनुसार ही मेरा पति आचरण करे | प्रतिस्पर्धी मेरा कोई
नहीं है |
मेरे पुत्र मेरे शत्रुओं को नष्ट करने वाले हैं , मेरी पुत्री रानी है , मैं
विजयशील हूं | मेरे और मेरे पति के प्रेम की व्यापक प्रसिद्धि है |
ओ प्रबुद्ध ! मैंने उस अर्ध्य को अर्पण किया है , जो सबसे अधिक
उदाहरणीय है और इस तरह मैं सबसे अधिक प्रसिद्ध और सामर्थ्यवान
हो गई हूं | मैंने स्वयं को अपने प्रतिस्पर्धियों से मुक्त कर लिया है |
मैं प्रतिस्पर्धियों से मुक्त हो कर, अब प्रतिस्पर्धियों की विध्वंसक हूं और
विजेता हूं | मैंने दूसरों का वैभव ऐसे हर लिया है जैसे की वह न टिक पाने
वाले कमजोर बांध हों | मैंने मेरे प्रतिस्पर्धियों पर विजय प्राप्त कर ली है |
जिससे मैं इस नायक और उस की प्रजा पर यथेष्ट शासन चला सकती हूं |
इस मंत्र की ऋषिका और देवता दोनों हो शची हैं | शची इन्द्राणी है,
शची स्वयं में राज्य की सम्राज्ञी है ( जैसे कि कोई
महिला प्रधानमंत्री या राष्ट्राध्यक्ष हो ) | उस के पुत्र – पुत्री भी राज्य
के लिए समर्पित हैं |
ऋग्वेद १.१६४.४१
ऐसे निर्मल मन वाली स्त्री जिसका मन एक पारदर्शी स्फटिक जैसे
परिशुद्ध जल की तरह हो वह एक वेद, दो वेद या चार वेद , आयुर्वेद,
धनुर्वेद, गांधर्ववेद , अर्थवेद इत्यादि के साथ ही छ : वेदांगों – शिक्षा,
कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और छंद : को प्राप्त करे और इस
वैविध्यपूर्ण ज्ञान को अन्यों को भी दे |
हे स्त्री पुरुषों ! जो एक वेद का अभ्यास करने वाली वा दो वेद जिसने
अभ्यास किए वा चार वेदों की पढ़ने वाली वा चार वेद और चार
उपवेदों की शिक्षा से युक्त वा चार वेद, चार उपवेद और व्याकरण
आदि शिक्षा युक्त, अतिशय कर के विद्याओं में प्रसिद्ध होती और
असंख्यात अक्षरों वाली होती हुई सब से उत्तम, आकाश के समान व्याप्त
निश्चल परमात्मा के निमित्त प्रयत्न करती है और गौ स्वर्ण युक्त
विदुषी स्त्रियों को शब्द कराती अर्थात् जल के समान निर्मल
वचनों को छांटती अर्थात् अविद्यादी दोषों को अलग करती हुई वह संसार के
लिए अत्यंत सुख करने वाली होती है |
ऋग्वेद १०.८५.४६
स्त्री को परिवार और पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका में चित्रित किया गया है
| इसी तरह, वेद स्त्री की सामाजिक, प्रशासकीय और राष्ट्र
की सम्राज्ञी के रूप का वर्णन भी करते हैं |
ऋग्वेद के कई सूक्त उषा का देवता के रूप में वर्णन करते हैं और इस
उषा को एक आदर्श स्त्री के रूप में माना गया है |
सारांश (पृ १२१ – १४७ ) -
१. स्त्रियां वीर हों | ( पृ १२२, १२८)
२. स्त्रियां सुविज्ञ हों | ( पृ १२२)
३. स्त्रियां यशस्वी हों | (पृ १२३)
४. स्त्रियां रथ पर सवारी करें | ( पृ १२३)
५. स्त्रियां विदुषी हों | ( पृ १२३)
६. स्त्रियां संपदा शाली और धनाढ्य हों | ( पृ १२५)
७.स्त्रियां बुद्धिमती और ज्ञानवती हों | ( पृ १२६)
८. स्त्रियां परिवार ,समाज की रक्षक हों और सेना में जाएं | (पृ १३४,
१३६ )
९. स्त्रियां तेजोमयी हों | ( पृ १३७)
१०.स्त्रियां धन-धान्य और वैभव देने वाली हों | ( पृ १४१-१४६)
यजुर्वेद २०.९
स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है |
यजुर्वेद १७.४५
स्त्रियों की भी सेना हो | स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित
करें |
यजुर्वेद १०.२६
शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें | जैसे राजा,
लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों |
वेदों की घोषणा को महर्षि मनु अपनी संहिता में देते हुए कहते हैं (३३.५६) :
“जो समाज स्त्री का आदर करता है वह स्वर्ग है और
जहां स्त्री का अपमान होता है, वहां किए गए सत्कर्म भी ख़त्म हो जाते
हैं|” वेदों के इस महत्वपूर्ण सन्देश की अनदेखी के कारण ही भारत एक
ऐसा गुलाम राष्ट्र बना जिसे गुलामों द्वारा ही चलाया जाता रहा और
यही कारण है कि आज बहुत सारी तथाकथित प्रगति के बावजूद
भी दुनिया एक खतरनाक और दाहक जगह बन गई है| महिलाएं – जो साहस
का उद्गम हैं उनको यथोचित सम्मान न मिलना ही इस का मूल कारण है|
अगर हम ने स्त्रियों को भोगविलास और नुमाइश की वस्तु मान
लिया तो कर्मफल व्यवस्था के अनुसार हमें अत्यंत कठोर परिणाम भुगतने
होंगे और यही हो रहा है| लेकिन अगर हम मातृशक्ति को साहस और
हमारी समस्त अच्छाइयों का प्रतिमान मान लें तो हम संसार को स्वर्ग
बना सकेंगे|
वेदों पर आधारित एक बलिष्ठ और सशक्तसमाज में स्त्री का सहज गुण
उसका साहस है| उसका यह साहस उसकी अपनी आत्मा औरमन के बल से
उपजता है,यह साहस कोई दुस्साहस नहीं है|
देखें, वेद क्या कह रहे हैं –
अथर्ववेद १४. १. ४७ – हे नारी, तू समाज की आधारशिला है| तेरे लिये हम
सुखदायक अचल शिलाखंड को रखते हैं| इस शिलाखंड के ऊपर खड़ी हो, यह
तुझे दृढ़ता का पाठ पढ़ायेगा| इस शिलाखंड के अनुरूप तू भी वर्चस्विनी बन
जिससे संसार में आनंदपूर्वक रह सके| तेरी आयु सुदीर्घ हो ताकि हम तेरे
तेज को पा सकें|
यजुर्वेद ५.१० – हे नारी, तू स्वयं को पहचान| तू शेरनी है| हे नारी, तू
अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटनेवाली है, तू दिव्य गुणों के प्रचार
के लिए स्वयं को शुद्ध कर| हे नारी, तू दुष्कर्मों एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के
समान विध्वस्त करने वाली है, सभी के हित के लिए तू दिव्य गुणों को धारण
कर|
यजुर्वेद ५.१२ – हे नारी तू शेरनी है, तू आदित्य ब्रह्मचारियों को जन्म
देती है, हम तेरी पूजा करते हैं| हे नारी, तू शेरनी है, तू समाज में
महापुरुषों को जन्म देती है, हम तेरा यशोगान करते हैं| हे नारी, तू शेरनी है, तू
श्रेष्ट संतान को देनेवाली है, तू धन की पुष्टि को देनेवाली है, हम
तेरा जयजयकार करते हैं, हे नारी, तू शेरनी है, तू समाज को आनंद और
समृद्धि देती है, हम तेरा गुणगान करते हैं| हे नारी, सभी प्राणियों के हित के
लिए हम तुझे नियुक्त करते हैं|
यजुर्वेद १०.२६ – हे नारी, तू सुख़देनेवाली है, तू सुदृढ़ स्थितिवाली है, तू
क्षात्र बल की भंडार है, तू साहसका उद्गम है| तेरा स्थान समाज में
गौरवशाली है|
यजुर्वेद १३.१६ – हे नारी, तू ध्रुव है, अटल निश्चयवाली है, सुदृढ़ है, तू
हम सब का आधार है| परमपिता परमेश्वर ने तुझे विद्या,
वीरता आदि गुणों से भरा है| समुद्रके समान उमड़ने वाली शत्रु सेनाएं
भी तुझे हानि न पहुंचा सकें, गिद्ध केसमान आक्रान्ता तुझे हानि न
पहुंचा सकें| किसी से पीड़ित न होती हुई तूविश्व को समृद्ध कर| (अर्थात्
पूरे समाज को नारी की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, ताकि वह
समाज में अपना योगदान दे सके| नारी के गौरव के लिए अपने प्राण तक
उत्सर्ग करने वाले वीरों का यह प्रेरणा सन्देश है|)
यजुर्वेद १३.१८ – हे नारी, तू अद्भुत सामर्थ्य वाली है| तू भूमि के समान
दृढ़ है| तू समस्त विश्व के लिए मां है| तू सकल लोक का आधार है| तू विश्व
को कुमार्ग पर जाने से रोक, विश्व को दृढ़ कर और हिंसा मत होने दे| (हर
स्त्री को मां के रूप में सम्मान देने से ही समाज में शांति, स्थिरता और
समृद्धि आएगी| इस के विपरीत स्त्रियों का भोगवादी चित्रण समाज में
दुखों और आपत्तियों का कारण है| आज आदर्श रूप में झाँसी की रानी,
अहिल्याबाई आदि वीरांगनाओं को सामने रखना होगा|)
यजुर्वेद १३.२६ – हे नारी, तू विघ्न – बाधाओं से पराजित होने योग्य
नहीं है बल्कि विघ्न- बाधाओं को पराजित कर सकने वाली है| तू शत्रुओं
को परास्त कर, सैन्य- बल को परास्त कर| तुझ में सहस्त्र
पुरुषों का पराक्रम है| अपने असली सामर्थ्य को पहचान और
अपनी वीरता प्रदर्शित कर के तू विश्व को प्रसन्नता प्रदान कर|
यजुर्वेद २१.५ – हे नारी, तू महाशाक्तिमती है, तू श्रेष्ठ पुत्रों की माता है|
तू सत्यशील पति की पत्नी है| तू भरपूर क्षात्रबल से युक्त है| तू शत्रु के
आक्रमण से जीर्ण न होनेवाली है| तू अतिशय कर्मण्य है| तू शुभ कल्याण
करनेवाली है| तू शुभ नीति का अनुसरण करनेवाली है| हम तुझे रक्षा के लिए
पुकारते हैं| (अर्थात् गलत मार्ग पर चलने वाले पति का अन्धानुकरण न करके
पत्नी को सत्य और न्याय की स्थापना के लिए आगे बढ़ना चाहिए
क्योंकि नारी में असीम शक्ति का निवास है|)
ऋग्वेद ८.६७.१० – हे खंडित न होने वाली, सदा अदीन बनी रहने
वाली पूजा योग्य नारी, हम तुझे परिवार एवं राष्ट्र में उत्कृष्ट सुख़ बरसाने
के लिए पुकारते हैं ताकि हम अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर सकें|
ऋग्वेद ८.१८.५ – हे नारी, जैसे तू शत्रु से खंडित न होनेवाली, सदा अदीन
रहनेवाली वीरांगना है वैसे ही तेरे पुत्र भी अद्वितीय वीर हैं जो महान
कार्यों का बीड़ा उठानेवाले हैं| वे स्वप्न में भी पाप का विचार अपने मन में
नहीं आने देते, फ़िर पाप- आचरण तो क्या ही करेंगे! वे द्वेषी शत्रु से
भी लोहा लेना जानते हैं क्योंकि तुम मां हो|
यजुर्वेद १४.१३ – हे नारी, तू रानी है| तू सूर्योदय की पूर्व दिशा के समान
तेजोमयी है! तू दक्षिण दिशा के समान विशाल शक्तिवाली है| तू
सम्राज्ञी है, पश्चिम दिशा के समान आभामयी है| तू अपनी विशेष कांति से
भासमान है, उत्तर दिशा के समान प्राणवती है| तू विस्तीर्ण आकाश के
समान असीम गरिमावाली है|
ऋग्वेद १०.८६.१० – नारी तो आवश्यकता पड़ने पर बलिदान के स्थल
संग्राम में भी जाने से नहीं हिचकती| जो नारी सत्य विधान करने वाली है,
वीर पुत्रों की माता है, वीर की पत्नी है, वह महिमा पाती है| उसका वीर
पति विश्व भर में प्रसिद्धि पाता है|
यजुर्वेद १७.४४ -हे वीर क्षत्रिय नारी, तूशत्रु की विशाल सेनाओं
को परास्त कर दे| शत्रुओं के लिए प्रयाण कर, उनकेह्रदयों को शोक से
दग्ध कर दे| अधर्म से दूर रह और शत्रुओं को निराशा रूपघोर अंधकार से
ग्रस्त कर ताकि वो फ़िर सिर न उठा पाएँ|
यजुर्वेद १७.४५ – विद्वानों द्वारा शिक्षा से तीक्ष्ण हुई एवं प्रशंसित
तथा शस्त्र आदि चलाने में कुशल हे नारी, तू शत्रुओं पर टूट पड़| शत्रुओं के
पास पहुंचकर उन्हें पकड़ ले और किसी को भी छोड़ मत, कैद करके कारागार
में डाल दे|
ऋग्वेद ६.७५.१५ – हेवीर स्त्री, अपराधियों के लिए तुम विष बुझा तीर हो|
तुम में अपार पराक्रमहै| उस बाण के समान गतिशील, कर्म कुशल, शूरवीर
देवी को हम भूरि- भूरिनमस्कार करते हैं|
ऋग्वेद १०.८६.९ – यह घातक मुझे अवीरा समझ रहा है, मैं तो वीरांगना हूं,
वीर पत्नी हूं, आंधी की तरह शत्रु पर टूट पडने वाले वीर मेरे सखा हैं|
मेरा पति विश्वभर में वीरता में प्रसिद्ध है|
ऋग्वेद १०.१५९.२ – मैं राष्ट्र की ध्वजा हूं, मैं समाज का सिर हूं| मैं उग्र
हूं, मेरी वाणी में बल है| शत्रु – सेनाओं का पराजय करने वाली मैं युद्ध में
वीर- कर्म दिखाने के पश्चात ही पति का प्रेम पाने की अधिकारिणी हूं|
ऋग्वेद १०.१५९.३ – मेरे पुत्रों ने समस्त शत्रुओं का संहार कर दिया है|
मेरी पुत्री विशेष तेजस्विनी है और मैं भी पूर्ण विजयिनी हूं| मेरे पति में
उत्तम कीर्ति का वास है|
ऋग्वेद १०.१५९.४ – मेरे पति ने आत्मोसर्ग की आहुति दे दी है, आज
वही आहुति मैंने भी दे दी है| आज मैं निश्चय ही शत्रु रहित हो गई हूं|
ऋग्वेद १०.१५९.५ – मैं शत्रु रहित हो गई हूं, शत्रुओं का मैंने वध कर
दिया है, मैंने विजय पा ली है, वैरियों को पराजित कर दिया है| शत्रु –
सेनाओं के तेज को मैंने ऐसे नष्ट कर दिया है, जैसे अस्थिर
लोगों की संपत्तियां नष्ट हो जाती हैं|

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