मंगलवार, 17 सितंबर 2013

सौर्य देवता विश्वकर्मा

सौर्य देवता विश्वकर्मा

पुराणों में एवं ' महाभारत ' में ' विश्वकर्मा ' का नाम
शिल्पशास्त्री व शिल्प प्रजापति के रूप में वर्णित
किया गया है।
एक और नाम ' त्वष्ट ' भी प्रतिरूप की तरह प्रयुक्त हुआ है। विश्व
के प्राचीनतम ग्रन्थ ' ऋग्वेद ' में भी ' विश्वकर्मा ' का उल्लेख
किया गया है जहां उन्हें ' सर्वद्रष्टा प्रजापति ' कहा गया है।
स्वरूप वर्णन में चारों दिशाओं में मुखाकृति , भुजा, पैर व नेत्र
वर्णित होने से ब्रह्मा से यह मेल खाती हुई आकृति है परन्तु एक
भिन्नता यह है कि ' विश्वकर्मा ' के पंख दर्शाए गये हैं।
विश्वकर्मा के लिए ' सौर देवता ' उपाधि भी प्राप्त है।
उन्हें द्रष्टा, पुरोहित एवं प्राण
सृष्टि का पिता भी कहा गया है।
विश्वकर्मा ने पृथ्वी को उत्पन्न किया और आकाश
को अनावरण किया था।
सारे देवताओं का नामकरण भी इन्होंने किया।
महाभारत महाग्रंथ में विश्वकर्मा को ' कृतीपति ' कहा गया है।
' मय' विश्वकर्मा के पिता हैं। कहीं कहीं इन्हें प्रभास वसु
तथा बृहसपति भगिनी ' योग्सिध्धा ' का पुत्र कहा गया है।
महाभारत में ब्रह्माजी के दक्षिण वक्ष से उत्पन्न होने
की कथा प्राप्त है।
विश्वकर्मा द्वारा निर्मित नगरों के नाम की सूची "
१ ) इन्द्रप्रस्थ : धृतराष्ट्र के लिए
२ ) द्वारिका : श्री कृष्ण के लिए
३ ) वृन्दावन : श्रीकृष्ण के लिए
४ ) लंका : सुकेश पुत्र राक्षसों के लिए
५ ) इन्द्रलोक : इंद्र के लिए
६ ) सुतल : पाताल लोक
७ ) हस्तिनापुर : पांडवों के लिए
८ ) विश्वय वाहन गरूड का भवन ( मत्स्य पुराण में वर्णित )
विश्वकर्मा ने विविध देवों के लिए अस्त्र का निर्माण
भी किया है।
१ ) श्री महाविष्णु का सुदर्शन चक्र
२ ) शिव का त्रिशूल एवं रथ ( त्रिपुरदाह के लिए )
३ ) इंद्र का वज्र एवं धनुष ( दधीच ऋषि की अस्थियों से
निर्मित )
विश्वकर्मा परिवार की कथाएँ : पुत्री संज्ञा का विवाह
विवस्वत सूर्य से हुआ। संज्ञा सूर्य ताप सहन ना कर पायीं और
अपने
पिता के पास लौट आयीं। सूर्य भी उनके पीछे आ पहुंचे।
तब सूर्य में थोड़ा तेज रख कर विश्वकर्मा ने कुछ अंश ले लिया ।
इसी सूर्य के अन्य तेज से विविध देवों के आयुधों का निर्माण हुआ
था। ऐसी कथा है ।
भागवत में विश्वकर्मा पत्नी का नाम ' आकृति ' / या ' कृति '
है।
उनके ३ अन्य पत्नियां थीं रति , प्राप्ति व नंदी ।
पुत्र : १ ) मनु चाक्षुष २ ) शम ३ ) काम ४ ) हर्ष ५ ) विश्वरूप ६ )
वृत्रासुर
इंद्र ने विश्वरूप की हत्या करने पर इंद्र के के प्रति द्रोह्बुध्धि के
कारण वृत्र की उत्पत्ति की गयी। इंद्र ने वृत्रासुर का भी
वध किया जो कथा सर्व विदित है।
पुत्रियाँ : १ ) बहिर्श्मती - वह प्रियव्रत राजा की पत्नी बनीं।
२ ) संज्ञा - व छाया सूर्य पत्नियां कहलातीं हैं वे
ब्रह्माजी की आज्ञा पर विश्वकर्मा द्वारा त्रिलोक
की अनिन्ध्य सुन्दरी अप्सरा तिलोत्तमा का विश्वकर्मा ने
निर्माण किया।
इंद्र दरबार की अप्सरा धृताची को क्रोधवश ' शूद्र्कुल में जन्म
लोगी '
ऐसा श्राप विश्वकर्मा ने दिया। वह ग्वाले के घर जन्मीं ।
ब्रह्मा जी की कृपा से विश्वकर्मा ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए
और उनका विवाह
उसी ग्वाले की कन्या से हुआ।
ब्राह्मण पिता व ग्वाले की कन्या के संयोग से ' दर्जी, कुम्हार ,
स्वर्णकार , बढई, शिल्पी आदि तंत्र विद्या प्रवीण अनेक
उप जातियों का निर्माण हुआ अत: वे विश्वकर्मा के वंशज
कहलाते है।

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