रविवार, 15 दिसंबर 2013

इस्लाम है आतंकवाद का कारण

इस्लाम है आतंकवाद का कारण

इस्लाम के संदेश को यदि ध्यानपूर्वक विशलेषण किया जाय तो यह विषय यौन-विज्ञान का नूतन सिद्धांत है जो कि दैहिक भोग और विवेकहीन हिंसा, इन दो स्तंभों पर आधारित है

यह सिद्धांत उस अल्लाह के नाम होता है जो सर्वाधिक दयालु और सर्वोत्तम निर्णायक होने का दावा करता है यद्यपि यह मजहब इन स्तंभों के बिना खड़ा नहीं हो सकता है, इन्हें बड़ी चतुराई से दैवीय आवरण में छिपा दिया गया है इस्लाम को बौद्धिक कि कसौटी पर कसते ही इसकी चमक-दमक समाप्त हो जाती है
इतिहाश साक्षी है कि मोहम्मद में जितना प्रभुत्व कि ललक थी उतनी और किसी भी व्यक्ति में नहीं थी यदि हम सम्पूर्ण मानव समाज को एक पिरामिड के रूप में देखे तो “अरबी पैगम्बर” को ही पायेंगे, उन्होंने मानव जाती के आचरण के लिए स्वयं को दैवीय मानव के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका तात्पर्य यह है कि सभी को उसके अनुसार सोचना एवं अनुभव करना चाहिए, उसके अनुसार ही खाना-पीना चाहिए और सभी कानून जो उन्होंने अल्लाह के नाम पर बनाये है उनकी अपनी सुविधा के अनुकूल ही है
केवल अल्लाह में विश्वास ही का कोई महत्त्व नही है, इससे दैवीय कृपा और जन्नत तब तक नहीं मिलेगा जब तक मोहम्मद में विश्वास न व्यक्त किया जाय | वह एक ऐसे बिचौलिया है कि कयामत के दिन उसका शब्द ही इसका निर्णय करेगा कि कौन जन्नत में जायेगा और कौन दोखज में | इतना ही नहीं, अल्लाह और उसके फरिस्ते भी मुहम्मद के पूजा करते है
इसी से मोहम्मद कि प्रभुत्व कि ललक कि तीब्रता सिध्द होती है
यीशु मसीह भी यहोवा गाड कि पूजा करते हुए पाए गए थे “लेकिन अल्लाह और उसके फरिस्ते तो मोहम्मद कि पूजा करते है"
इस प्रकार कि स्थिति के जो कि मनुष्य और अल्लाह दोनों कि ही पकड़ से परे है, अर्जन के लिए धैर्य, आयोजन एवं शक्ति कि आवश्यकता है पैगम्बर को ये सभी मिले थे और उन्हें, इन सबको असामान्य सफलतापूर्वक संचालित करने कि योग्यता भी मिली थी
पैगम्बर ने यह सुनिश्चित कर लिया था कि उनका राष्ट्र एक अजेय सैन्य शक्ति बने ताकि एक ऐसी शक्तिशाली साम्राज्य बन जाए, जोकि उनकी व्यक्तिगत पवित्रता एवं शिक्षा कि पुनिताता पर टिका हो| यातना अत्याचार और उत्पीडन कि प्रचंड खुराक दे सकने में सिध्द एक अति शक्ति संपन्न एवं निडर सेना निर्माण द्वारा अरब साम्राज्य स्थापना के अपने उद्देश्य कि पूर्ति के लिए पैगम्बर ने पुरुषों को आकर्षित करने के हेतु कामोत्तेजना को सबसे आकर्षण बल के रूप में प्रयोग किया
तथापि यह समझ कर कि पुरुष सिर्फ शारीरिक भोग तक सिमित नहीं रहता, तो उन्होंने अपील के आकर्षण का क्षेत्र विस्तृत करके जिहाद का अन्वेषण किया जिससे पवित्र सैनिको (मुजाहिद) कि न सिर्फ स्त्री और लडको कि ही प्रभुत मात्र कि पूर्ति होती थी , बल्कि गैर मिस्लिमो को लुटाने और उनकी हत्या को भी क़ानूनी रूप दे दिया, जो इस प्रकार अल्लाह को प्रसन्न करने का एक सबसे अच्छा रास्ता बन गया
यह पैगम्बर की शतरंजी चाल थी जिसके द्वारा उनके अनुयायियों के मस्तिष्क एक जबरदस्त विश्वास हो गया कि लूटपाट, हत्या बलात्कार तथा वर्णनातीत दुःख दर्द फैलाना, बच्चो को अनाथ और स्त्रियों को बिधवा करना जिहाद ( पवित्र युध्द ) के रूप में इस्लाम का सर्वोच्च काम है जिसके द्वारा जन्नत के द्वार खुलने कि पूरी गारंटी है
माना कि मुहम्मद के पहले भी बड़े-बड़े विजेता हुए है परन्तु किसी ने भी इसे अतुअचारो कि पवित्रता का दर्जा नहीं दिया जिनके बदले में आशीष, मंगलकामनाए एवं आनंद मिले| मस्तिष्क की सफाई की यह शक्ति जो पैगम्बर मोहम्मद के पास थी, वह ना केवल भरी मात्रा में थी सदैव की रहने वाली थी क्योकि यह दोनों ही रूपों में चौदह शताब्दियान बीत जाने के बाद भी अभी भी उसी मजबूती से चल रही है

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