रविवार, 29 दिसंबर 2013

मुस्लिम मत ने हिंदू मत को क्या-क्या दिया या हिंदू मत ने मुस्लिम मत से क्या-क्या लिया

मुस्लिम मत ने हिंदू मत को क्या-क्या दिया या हिंदू मत ने मुस्लिम मत से क्या-क्या लिया

मुस्लिम-मत ने, हिंदू-मत को क्या दिया ????

प्रथम स्पष्ट कर दूँ कि ऊपर के शीर्षक में मैंने “मुस्लिम-धर्म” या “हिंदू-धर्म” शब्द का प्रयोग नहीं किया है परन्तु “मत” शब्द का प्रयोग किया है क्यों कि संसार में धर्म तो एक ही है – वैदिक धर्म, और बाकी सारे तो मत, पंथ, मार्ग, विचार, परिवार, समुदाय या दल हैं | इसलिए हिंदू धर्म को धर्म नहीं पर “मत” कहा जाना चाहिए, वैसे भी हिंदू मत वाले “मतवाले” ही होते हैं | इस वैदिक धर्म को ही आप मानव-धर्म कह सकते है और इसी धर्म को आप सत्य-सनातन धर्म भी कह सकते हैं| ५११२ वर्ष पहलें कोई समय था जब सारी धरती पर एक ही धर्म था – वैदिक धर्म | ना ईसाई, ना मुस्लिम,ना जैन, ना बौद्ध,  ना सिक्ख या कोई और |



किसी भी दो अलग-अलग परिवेश में पले-बढ़े व्यक्ति या परिवार के मिलने पर कुछ नया सीखना-सिखाना, विचार-व्यवहार का होना स्वाभाविक है | एक परिवार कि पुत्री विवाहित होकर दूसरे परिवार कि सदस्य (बहु) बनती है तब ससुराल में अपने साथ कुछ नया संस्कार, विचार, व्यवहार लाती है और साथ ही ससुराल से कुछ सीखकर जब माँ के घर जाती है तब भी कुछ ससुराल के संस्कार, विचार मायके में बताती है और इस प्रकार एक सम्बन्ध के साथ-साथ अन्य बातों का भी आदान-प्रदान होता है | विवाह के बाद आदान-प्रदान होता है रहन-सहन, खान-पान आदि का ठीक उसी प्रकार दो मतों के बीच में भी द्वन्द चलता है और आदान-प्रदान भी चलता रहता है | मुस्लिम मत के दीर्घ शासन काल में हिंदू मत के ऊपर बहुत सारे अत्याचार किये गए और इस दौरान हिंदू मत ने क्या-क्या अपनाया, मुस्लिमों ने हमको क्या-क्या दिया, उसका एक संकलन नीचे प्रस्तुत किया है, कृपा कर विचार करें और अच्छी बातों के समूह (वैदिक धर्म) में प्रवेश कर चुकी बुराइयों (अन्य सारे मतों) को छोडें |



प्रस्तुत है मुस्लिम मत ने हिंदू मत को क्या-क्या दिया या हिंदू मत ने मुस्लिम मत से क्या-क्या लिया :-

    हिंदू नाम :- सबसे पहले अपने आप को –“गर्व से कहो हम हिंदू है” कहने वाले हिंदू को “हिंदू” नाम मुस्लिमों ने दिया | कभी स्वामी विवेकानंद ने कहा होगा “गर्व से कहो हम हिंदू है” बस फिर क्या था सब के सब लग गए रटने “गर्व से कहो हम हिंदू है”…. “गर्व से कहो हम हिंदू है” | किसी ने फुर्सत से सोचा नहीं कि आखिर हम अपने आपको हिंदू क्यों कहें ??? विवेकानंद को हिंदू धर्म का आदर्श पुरुष बताया जाता है पर किसी के पास समय नहीं है विवेकानंद का साहित्य पढ़ने का और सच्चाई जानने का | विवेकानंद ने क्या सच में हिंदू धर्म के लिए काम किया था ?? या अन्य धर्म के समर्थन में भी काम किया था ?? इन सारी बातों पर हमें विचार करना चाहिए | (इस पर मैं कभी स्वतंत्र लेख लिखूंगा) पर ये हिंदू शब्द आया कहाँ से ? किस भाषा का शब्द है ये ? इसका क्या अर्थ है ? हम कब से हिंदू कहलाने लग गए ? क्या राम और कृष्ण हिंदू थे क्या ? यदि नहीं थे तो वे कौन थे ? क्या हमारे शास्त्रों में हिंदू शब्द का उल्लेख आता है क्या ? रामायण, रामचरितमानस, महाभारत, गीता, वेद, उपनिषद, दर्शन ….. अरे हनुमान चालीसा…. आदि किस पुस्तक में हिंदू नाम आता है ? यदि नहीं आता तो हम कितने वर्ष पूर्व हिंदू कहलाने लग गए ? इन सारे प्रश्नों का उत्तर खोजे बिना सब अपने आपको हिंदू कह और लिख रहे हैं | मैं मानता हूँ कि आज अपने-आपको हिंदू लिखना और कहना हमारी मजबूरी है | ये मजबूरी हमारी ही पैदा कि हुई है, अगर हमारे पूर्वजों ने अपना असली नाम “आर्य” कहना/लिखना छोड़ा न होता तो आज हम अपने आपको हिंदू क्यों कहते? अपने-आपको हिंदू लिखना और कहना हमारी मजबूरी है क्यों कि सरकारी दस्तावेजों में कहीं हिंदू के अलावा और कोई विकल्प नहीं है तो मजबूरन हमें हिंदू लिखना पड़ता है जैसे जनगणना के दस्तावेज में न चाहते हुए भी हिंदू लिखवाना मजबूरी है, हम चाह कर भी अपने आप को वैदिक धर्मी नहीं कह सकते, पर हिंदू कहने पर गर्व करना ? यह कैसी मजबूरी ? ये कैसी मूर्खता ? आइये ! ऊपर के प्रश्नों के उत्तर खोजे |

हिंदू शब्द हमें मुस्लिमों ने दिया और हमने बड़े प्रेम से उसे स्वीकार कर लिया | यह शब्द फारसी भाषा का है, जिसका अर्थ होता है – काला, काफ़िर, लुटेरा | क्या हम सब काले और/या लुटेरे हैं ?? काफ़िर का मतलब होता है जो मुसलमान नहीं है वह व्यक्ति | हिंदू कि परिभाषा क्या है ?? जो व्यक्ति मुसलमान या ईसाई नहीं है वे सब हिंदू हैं | ये कैसे परिभाषा है ? यह परिभाषा नकारात्मक है क्यों कि हिंदू कि एक सर्वमत सम्मत मान्यताएँ नहीं हैं | आप ईश्वर को निराकार या साकार मानते है तब भी आप हिंदू है, जड़ या चेतन कि पूजा करते है तब भी आप हिंदू है| हिंदुओं को अपना सर्व सम्मत धर्मग्रन्थ कोई नहीं है, कोई सुनिश्चित नहीं है, कोई कहेगा वेद, तो कोई गीता, कोई रामायण तो कोई पुराण भी, और किसी किसी को तो पता भी नहीं| जब कि ईसाई का एक ही ग्रन्थ है – बाईबल, मुसलमान का एक ग्रन्थ है कुर्-आन| और हमारा ? सब कुछ अनिश्चित |



हाल ही में हिंदू शब्द कि एक और व्याख्या कि गयी और बताया गया कि यह एक जीवन शैली का नाम है | जब से माननीय न्यायालय ने बताया तब से हिंदू कहने लगे कि ये एक जीवन शैली है पर मैं पूछता हूँ कि ये कौन सी जीवन शैली है ? किस जीवन शैली कि बात कर रहे हैं आप ? सबेरे ४ बजे उठने वाली या ८-९ बजे उठने वाली ? सूर्य ढलने से पहले खाना खा लेने वाली या १२ बजे तक चरते (खाते) रहने वाली ? भुत-प्रेत, बलिप्रथा आदि बुराइयों को मानने वाली?   पीपल के पेड़ पर धागा बांधने वाली ? जिन्दा-स्त्री को मृत-पति के साथ जला कर ठंडी हत्या कर देने वाली? और सती-प्रथा को शास्त्र-सम्मत बताने वाली ? देवी-देवता को शराब व मांस का भोग लगाने वाली? साधु-सन्यासी चिलम, अफीम, गांजा पीते है वह जीवन शैली ? मृत्यु के बाद शव को जलाना, गाडना, पानी में बहाना? कौन सी जीवन शैली? तो निष्कर्ष ये निकला कि ये परिभाषा गलत है |



फिर एक और परिभाषा दी जाती है कि “जो कश्मीर से केरल और गुजरात से असम तक रहते हैं वे सारे हिंदू | हिंदुस्तान में जो रहे वो हिंदू” | ये परिभाषा भी लचर और कमजोर है | यदि इस परिभाषा को मान लिया जाय तो फिर श्रीलंका, पाकिस्तान, बंगलादेश, अरब, अफ्रीका, अमेरिका आदि में रहने वालों का क्या होगा ? वे हिंदू नहीं रहेंगे | और हिंदुस्तान में तो मुस्लिम व ईसाई भी रह रहे है वे इस परिभाषा के अनुसार अपने आप को हिंदू तो कहेंगे नहीं तो फिर उनका क्या करेंगे ?



एक और व्याख्या की जाती है कि “हिनस्ति दुरितानि इति हिंदू” जो दुर्गुणों का नाश करें वह हिंदू | हिंदू शब्द के “हि” और “दू” दोनों कि व्याख्या कर दी पर व्याख्या करने वाला ये भूल गया कि ये हिंदू शब्द संस्कृत का नहीं है | जब शब्द संस्कृत का नहीं है तो फिर व्याख्या संस्कृत के नियमों के अनुसार कैसे होगी ?

  हिंदू शब्द कि दी जाने वाली सारी की सारी व्याख्याएँ, परिभाषाएँ गलत है | एक गलत को सही साबित करने कि बिन-जरुरी कसरत है और कुछ नहीं | आवश्यकता है सच्चाई को स्वीकार करने की, कि हम हिंदू नहीं है |



गर्व करने योग्य एक ही नाम है “आर्य” | राम और कृष्ण हिंदू नहीं थे, वे आर्य थे | हमारे किसी भी शास्त्र में हिंदू शब्द का उल्लेख नहीं है पर आर्य शब्द का उल्लेख तो बौद्ध और जैन ग्रंथों में भी मिलता है | हम कुछ सौ वर्षों से हिंदू अपने-आपको कहते चले गए और सामने वाला हमें हिंदू कहता चला गया असलियत में वो तो हमारा अपमान कर रहा था, पर हम थे कि समझे ही नहीं |



अपने इस झूठे गर्व करने योग्य शब्द पर गर्व न करते हुए हिंदू नाम को छोड़ कर अपने सच्चे नाम “आर्य” पर आ जाओं | पर क्या करें हम ! रास्ता इतना लंबा काट लिया है कि अब शुरुआत करने के लिए बहुत शक्ति चाहिए | पर भैया ! कही से तो करनी ही होगी शुरुआत, तो क्यों ना आज से ही शुरुआत करें | आर्य का अर्थ होता है महान्, उत्तम पुरुष, श्रेष्ठ पुरुष | आइये ! मुस्लिमों द्वारा दिए गए इस भेंट में मिले नाम को छोड़ दें, त्याग दें | जहाँ जरुरत नहीं वहाँ उसका प्रयोग ना करें और कम से कम गर्व तो ना ही करें | मजबूरी में किसी जगह लिखना पड़े तो -लिखें, पर गर्व तो नहीं ही |

    ताबीज :- आज लगभग हर हिंदू के गले में और/या भुजा में ताबीज सुशोभित है वह भी मुसलमानों की ही देन है | हमारे में से बहुत सारे भाई-बहन सबेरे या शाम या सप्ताह में कम से कम एक बार हनुमान चालीसा का पाठ किया करते हैं और कहते हैं “काँधे मूँज जनेऊ साजे” |  जिसका अर्थ होता है कि चार वेदों के विद्वान हनुमान जी अपने शरीर पर जनेऊ पहनते थे और उनका शरीर जनेऊ से सुशोभित लगता था | पर हनुमान चालीसा का पाठ करने वाला भक्त स्वयं जनेऊ नहीं पहनता | अगर वह पहनता है तो फिर मुस्लिमों का दिया हुआ ताबीज ही पहनता है | अपने गले में या बांह में लटकाए या बांधे ताबीज को क्या कभी आपने तोड़ कर या खोल कर देखा है ??? आखिर इसमें है क्या ?? यदि नहीं ! – तो अब कर के देखें | आप पाएंगे वो अक्षर या लकीरें जो समझ नहीं आने वाली | इन ताबीजों में अरबी भाषा में लिखा होता है | इस अरबी भाषा को पढ़ना और उसका अर्थ बताना आपके परिवार या आसपड़ोस के हर सदस्य के लिए कठिन काम हो जायेगा | यदि हम इसे पढ़ नहीं सकते या अर्थ नहीं जानते तो फिर बाँधने / पहनने से क्या लाभ ? क्यों पहने हम ? अरे ! बाँधना ही है तो आप गायत्री मंत्र लिख कर बाँध लें ! पन्डित रुचिराम जी ने अरब देश में सात साल रह कर अनेक मुस्लिमों के गलें में गायत्री मंत्र का ताबीज बना-बना कर पहनवाया था | क्या हम ऐसा नहीं कर सकते ? अगर हम गायत्री मंत्र का ताबीज मुसलमान को नहीं पहना सकते तो फिर अरबी में लिखी कुर्-आन की एक आयत से बना ताबीज अपने गले क्यों ???? और वो भी जनेऊ उतारने कि कीमत पर ???? कभी नहीं | ऐसा कभी नहीं होना चाहिए | दूसरा, यदि एक मंत्र को ही गले या बाँह में बाँधने से लाभ मिलता है तो फिर तो पूरी कि पूरी पुस्तक ही क्यों न बांध ली जाये ? जरा ठहरें ! और किसी काम को करने से पहले विचार करें |



हमारे कुछ हिंदू भाई भी नक़ल करने में बहुत माहिर हैं, ताबीज का हिंदू संस्करण भी निकाल लिया गया है | आपने सुना होगा “हनुमान सिद्ध मंत्र अभिषिक्त लॉकेट” आदि आदि | ये सब क्या है ? ये सब के सब ताबीज के ही तो रूपांतरण हैं | यदि हनुमान लॉकेट पहनने से हमारे दुःख दूर होंगे तो फिर हनुमान जी अपने दुःख दूर करने के लिए क्या पहनते थे ? क्या हनुमान जी भी कोई मन्त्र अभिषिक्त यन्त्र या लॉकेट पहना करते थे ? नहीं | हनुमान जी स्वयं चारों वेदों के पण्डित थे और सारे के सारे मंत्र उनको याद थे तो फिर वे कौन सा लॉकेट पहनते ?? आप भी एक मंत्र याद करें और फिर उसका अर्थ याद करें जब मन्त्र और उसका अर्थ याद हो जाय तब दूसरा मंत्र याद करना शुरू कर दें और यह क्रम सतत चलता रहना चाहिए  | जब सारे मंत्र याद करते-करते सिद्धि प्राप्त हो जायेगी तब मुक्ति अर्थात् सुख आनंद खुद ही मिल जायेगा | तो फिर आज से ही लग जाइये वेद मंत्र याद करने में, उतार कर छोड़ दें ताबीज को और धारण करें जनेऊ जो हनुमान चालीसा में कहे अनुसार आपकी कंचन काया (शरीर) पर शोभा देगा |

    कबर :- मुस्लिम मत ने हमें दी “कबर” और “कबर पूजा” | हम नकलची हिंदू क्यों पीछे रहते तो हम भी लग गए कबर बनाने/बनवाने और पुजवाने | पर हम हिंदुओं ने इस कबर को सुन्दर सा नाम दिया “समाधि” | हर अनपढ़ साधु (घर का भगौड़ा) के मरने के बाद हमने उसे गाडना शुरू कर दिया और कहने लगे “समाधि” जब कि वेद में साफ़ लिखा है कि मरने के बाद शरीर को गाडना नहीं, जलाना चाहिए ताकि शरीर अपने मूल पाँच तत्वों में जल्दी से जल्दी मिल जाये पर “हिंदू” अपनी मान्यताओं को छोडकर अन्यों कि बातों / प्रथाओं को स्वीकार करने में ही अपनी धन्यता समझता है | “कबर” को “समाधि” बता बता कर जब ये कबरें सामान्य हो गयी तो तब भी हमने हार नहीं मानी और किसी बड़े साधु के मरने पर बनी कबर को “महासमाधि” तक कहने लगे जैसे पुट्टपर्थी के साईं बाबा को हाल ही में दी गयी समाधि(कबर) को समाधि न कह कर हम उसे महासमाधि कहते है जैसे तो बहुत बड़ी उपलब्धि न हो | आपको याद होगा कुछ वर्षों पूर्व जब दूरदर्शन पर महाभारत धारावाहिक आता था तब सारे विज्ञापनों में महाभारत कि नक़ल कर के अपने उत्पाद को “महा” बताते थे | तो अब अगला चलन होगा “महासमाधि” का, जब भी कोई प्रसिद्ध साधु मृत्यु को प्राप्त होगा तो उसकी कबर(समाधि)नहीं, पर महाकबर (महासमाधि) बनेगी | “महासमाधि” की तुलना हम मुस्लिम मत द्वारा बनाई जा रही “गाजी-कबर” से कर सकते है | गाजी कबर में शरीर के नाप के अनुसार नहीं, पर कबर, गज के अनुसार बनाई जाती है | जहाँ-जहाँ आप शरीर के नाप से लंबी कबर देखें तो समझ लें कि वह गाजी-कबर है | ये गाजी कबरें केवल जमीन घेरने के लिए ही बनाई जाती है और मूर्खों के सामने उसकी महिमा गा- गाकर लूटने के लिए ही बनाई जाती है | कृपा कर कबर (समाधि) बनने से बचें | आज तक आपने आदि शंकराचार्य की, पाणिनि, संदीपनी, शंकर, हनुमान, राम, कृष्ण, अम्बा, गुरु नानक जी, आदि देवी-देवताओं या किसी विद्वान कि कबर नहीं सुनी होगी और नहीं देखी होगी क्यों कि ये सारे देवी-देवता, विद्वान वेद के अनुसार अपने शरीर को अग्नि को सौप देते थे न कि जमीन को | ये ऊपर गिनाये सारे विद्वान, देवी-देवता किसी न किसी महान् कार्य के लिए या उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक के लिए याद किये जाते है पर आज के अनपढ़ साधुओं ने तो कुछ भी ऐसा नहीं किया जिसके कारण वे याद किये जाय इसलिए अपना स्मारक कबर बनवा कर लोगों से पुजवाते हैं | पाणिनि अपनी अष्टाध्यायी के कारण याद किये जाते है पर आज के साधु ?? कबर के कारण | कृपा कर कबर बनाने/बनवाने से बचे और अन्यों को भी प्रेरित करें कि जमीन में नहीं, शरीर को मरने के बाद जला देना ही उत्तम है |
    कबर पूजा :- कबर पूजा भी हमने मुस्लिमों से सीखी है | आप सब अपने आस-पड़ोस, नगर में देखते होंगे कि बहुत से हिंदू भाई, कबरों को पूजने जाते है | क्या कभी आपने सोचा या पूछा, कौन थे ये लोग जो कबरों में दबाएँ गए हैं ? नहीं ? तो आज ही पूछें | पहले जानें और फिर कोई कार्य करें | ये जितनी भी कबरें बनी है उन सारी कबरों में किसी ना किसी ऐसे मुस्लिम को दबाया गया है जो विद्वान नहीं मुर्ख थे | हमारी संस्कृति में विद्वानों को आदर दिया जाता है न कि मूर्खों को | ये कबरों में दफनाए गए लोग दिन में तो निकम्मे बैठे-बैठे रहते थे और हमारी-आपकी माँ,बहन,बेटी को ताकते रहते थे या किसी मुस्लिम सुल्तान, आक्रमणकारों का जासूस हवा करता था | जो जितना ज्यादा दुराचारी, अनपढ़, ठग होता था या जिसने जासूसी करके ज्यादा से ज्यादा लाभ सुल्तान या आक्रमणकारों को दिलवाया होता था उसकी कबर उतनी ही बड़ी, सुन्दर, सजी-धजी बनाई जाती थी | कमाल कि बात तो ये है कि ये कबरें बनाई भी जाती थी तो हमारे ही मंदिरों में, गुरुकुलों में और फिर कहते थे कि ये अमुक भवन हमने बनवाया …. इसलिए भाइयों आप खुद बचे और दूसरों को बचाएं | कबर पूजा कोई अच्छा काम नहीं है | भारत में जब गजनवी आया था तब सोमनाथ के ऊपर १७ बार हमला किया था, हर बार वह हारा, इसने बलवान्  थे हम, पर जब मुस्लिमों ने पाया कि ऐसे हम हारने वाले नहीं है तो कुछ जासूस भेजे गए | इन जासूसों ने अपने आपको सूफी संत बताया | हम भोले भले लोग थे, साधुओं को मान-सम्मान देना हमारे स्वाभाव में था तो लग गए इनके पीछे जैसे तो हमारे विद्वान, तपस्वी संतो से ये सूफी ज्यादा विद्वान् व सदाचारी न हों | हमारे पास अपने विद्वान, सदाचारी, तपस्वी, योगी सन्यासियों कि कोई कमी नहीं थी और न आज है पर हम लगे रहते है ऐसे धूर्तों के पीछे | जासूस को तो बनी-बनाई, पकी-पकाई बातें, रिपोर्ट मिल गयी और भेज दी अपने सुलतान तक, जनता भी सूफी संत पर लट्टू और बातें भी पता चल गयी तो सुलतान आ कर धमक गया राजा पर, सारे के सारे सैनिक मारे गए, माँ-बहन-बेटियों कि इज्जत लूट-लूट कर विधवाएँ बनाई गयी | और ऐसे-ऐसे तथाकथित सूफी संतों को हमने उनके मरने के बाद “पीर” घोषित कर दिया, उनकी कबरों को पूजना शुरू कर दिया मानों हम सब एहसान मान रहे हो कि आपने कितना अच्छा किया हमारी माँ-बहन-बेटी के साथ बलात्कार करके | धिक्कार है उस हर हिंदू को जो कबर पर अपना सिर पटकता है और माँगता है संतान, सुख, धन, वैभव | ये धन, वैभव माँगते उनसे, – जो कभी फटीचर थे, भिखारी थे, मंगेतर थे, दर-दर भटकने वाले या दुराचारी, अत्याचारियों से – अपने लिए माँगना कितनी शर्म और लज्जा की बात है | कृपा कर इससे बचें | हमारे हिंदू भाई कबर से संतान माँगते हैं, उस लाश से जो वर्षों पहले जमीन के अंदर गाड़ दी गयी थी और अब उसके शरीर का रक्त, हड्डी व वीर्य किसी का नमूना भी नहीं मिल सकता | संतान तो किसी चेतन से ही माँगनी चाहिए पर हम हिंदू तो कही भी, कभी भी, किसी से भी व कुछ भी माँग लेते हैं | जरा विचार करें |
    मृत्यु दिवस मनाना :- हमारी संस्कृति के अनुसार हम महापुरुषों का जन्म दिवस मानते हैं कभी भी किसी महापुरुष का मृत्यु दिवस नहीं मनाते | हमारे सारे त्यौहार आनंद व प्रसन्नता के हैं, कोई ऐसा त्यौहार नहीं जिसमें हम रुदन, दुःख प्रकट करते हैं, पर मुस्लिम सभ्यता के प्रभाव में रह-रह कर हमने भी कुछ-कुछ सीख ही लिया | आज हिंदू समाज का कोई-कोई वर्ग अपने संत-महंत का मृत्यु दिवस, पुण्यतिथि के नाम पर मनाने लगा है | क्या कभी आपने श्री कृष्ण जी या मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कि मृत्यु तिथि सुनी ??? राम नवमी या कृष्ण अष्टमी उनकी जन्म तिथि का उत्सव है | गुरु नानक जयंती, महावीर जयंती, बुद्ध जयंती ये सब जन्म तिथियाँ ही हैं | हमारी परंपरा जन्म जयंती मनाने कि है न कि मृत्यु तिथि | कृपा कर ध्यान दें और इस बुराई से बचें |
    स्त्री सम्मान :- हमारे शास्त्र बताते है कि स्त्री का सम्मान करों | शास्त्र कहता है कि “जहाँ नारी कि पूजा अर्थात् सम्मान होता है वह घर, परिवार, समाज, राष्ट्र सुखी होता है और वह देवता रहते हैं” | लेकिन आज उल्टा हो रहा हैं | मुस्लिम प्रभाव में आ कर हम सब स्त्री का सम्मान नहीं कर रहे और सब दुखी है | आइये ! नारी का सम्मान करें |
    लोबान :- पहले के समय में मंदिरों में अगर-तगर-गुग्गुल आदि सुगन्धित पदार्थ जलाये जाते थे पर आज मुस्लिम प्रभाव में हिंदू लोबान का प्रयोग करने लगे हैं  | यज्ञ कुंड कि जगह लोबान जलाने के पात्र ने ले ली है | आइये ! आज से ही यज्ञ कुंड का प्रयोग करें और लोबान पात्र का नहीं | सुगन्धित पदार्थ में सामग्री का प्रयोग करें, गुग्गुल, अगर-तगर का प्रयोग करें ना कि लोबान का |
    पाँच बार कि नमाज :- नकलची हिंदुओं ने मुस्लिमों से पाँच बार कि नमाज कि तरह आरती भी सीख ली है | कई मंदिरों में दिन के अलग-अलग  समय आरती होती है और उसको नाम दिया जाता है – शयन आरती, भोग आरती, मंगल आरती आदि | ईश्वर सोता ही नहीं तो फिर कैसे शयन आरती ? खाता ही नहीं तो फिर कैसे भोग आरती ? सबको जगाने वाले के लिए मंगल आरती क्यों ? आइये ! इससे बचें | संध्या, वंदन दो समय किया जाता है – सबरे और शाम |

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