मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

वेदों से प्रभावित ईसा मसीह की शिक्षा !

वेदों से प्रभावित ईसा मसीह की शिक्षा !

इस्लामी मान्यता   के अनुसार्   अल्लाह   लोगों   का  मार्गदर्शन   करने  के  लिए  समय  समय   पर  अपने  नबी  ( Prophets )  या  रसूल    भेजता   रहता   है  ,और अल्लाह  ने   फरिश्तों   के  द्वारा द्वारा  कुछ  रसूलों   को   किताब   भी   दी   है  , इसी  तरह्   से  इस्लाम  में  मुहम्मद   को   भी  ईसा  मसीह    की  तरह  एक   रसूल  माना   गया   है  . और अल्लाह    ने ईसा  मसीह   को   जो  किताब   दी  थी , मुसलमान  उसे इंजील  और  ईसाई   उसे नया  नियम    (New Testament )  कहते   हैं , चूँकि  मुसलमान  मुहम्मद   को  भी  अल्लाह   का  रसूल    मानते   हैं  , लेकिन  मुहम्मद  और ईसामसीह    की शिक्षा   में   जमीन   आसमान    का  अंतर   है  ,  जबकि  इन  दौनों   को  एक   ही  अल्लाह   ने   अपना  रसूल   बना  कर  भेजा   था, इसका असली   कारण  हमें  बाइबिल   के  के नए  नियम   से  और   ईसा  मसीह  की  जीवनी    से   नहीं  बल्कि कुछ  ऎसी  किताबों  से  मिलता  है , जिनकी   खोज  सन  1857 ईस्वी    में   हुई  थी।

1-ईसा के जीवन  के अज्ञात वर्ष

ईसा  मसीह  के अज्ञात  वर्षों   को  दो  भागों  में  बांटा  जा  सकता  है ,जिनके बारे में अभी  तक  पूरी  जानकारी   नहीं  थी, पहला भाग 14  साल  से 30  साल  तक  है  , यह 18  साल   ईसा  के  क्रूस  पर  चढाने  तक   का   है  .  दूसरा   काल  क्रूस   पर  चढाने   से  ईसा   की  म्रत्यु   तक   है ,

ईसाई  विद्वानों   के अनुसार  ईसा  मसीह  का  जन्म 25 दिसंबर सन  1  को   इस्राएल  के  शहर  नाजरथ   में हुआ  था , उनके  पिता  का  नाम  यूसुफ  और  माता   का  नाम  मरियम  था ,ईसा    बचपन  से  ही कुशाग्र  बुद्धि  थे  ,   इसका  प्रमाण   बाइबिल   में   इस प्रकार  दिया  गया   है ,
"जब  ईसा  12  साल  के  हुए तो माता  पिता  के साथ  त्यौहार  मानाने  यरूशलेम  गए. और वहीं  रुक  गए , यह  बात उनके   माँ  बाप  को पता   नहीं  थी  ,  वह  समझे   कि  ईसा   किसी  काफिले  के  साथ   बाहर  गए   होंगे  ,लेकिन  खोजने  के  बाद ईसा  मंदिर   में विद्वानों  के साथ चर्चा  करते  हुए  मिले , ईसा   ने   माता  पिता से  कहा आप  मुझे  यहाँ  देखकर  चकित  हो  रहे  हो  ,लेकिन  आप   अवश्य  एक  दिन   मुझे अपने   पिता के  घर  पाएंगे
बाइबिल - लूका 2 :42  से  50  तक  ,
इसके  बाद   30  साल   की  आयु तक यानि   18  साल  ईसा   मसीह  कहाँ  रहे   और  क्या  करते  रहे इसके  बारे  में कोई  प्रमाणिक   जानकारी   न  तो  बाइबिल   में  मिलती  और  न  ईसाई   इतिहास      की   किताबों   में   मौजूद  है ,ईसा  मसीह    के  इन 18 साल  के अज्ञातवास को  इतिहासकार "ईसा  के  शांत  वर्ष (Silent years) ,खोये  हुए  वर्ष ( Lost years  ) और और " लापता  वर्ष  (Missing years ) के  नाम  से  पुकारते   हैं  .

2-ईसा  की पहली   भारत यात्रा 

इस्राएल  के राजा  सुलेमान   के  समय से ही    भारत  और  इजराइल   के  बीच  व्यापार   होता  था  .  और काफिलों    के  द्वारा   भारत के  ज्ञान  की  प्रसिद्धि  चारों तरफ   फैली   हुई  थी  . और  ज्ञान प्राप्त  करने  के लिए ईसा  बिना  किसी   को  बताये  किसी   काफिले  के साथ  भारत चले  गए  थे.इस बात    की खोज सन 1887  में  एक  रूसी शोधकर्ता "निकोलस  अलेकसैंड्रोविच  नोतोविच  ( Nikolaj Aleksandrovič Notovič )   ने   की  थी .इसने   यह   जानकारी  एक  पुस्तक  के  रूप  में प्रकाशित  करवायी   थी  ,  जिसमे 244 अनुच्छेद   और  14  अध्यायों   में  ईसा की  भारत  यात्रा का  पूरा विवरण  दिया  गया  है पुस्तक  का नाम "  संत  ईसा  की  जीवनी  (The Life of Saint Issa )  है .पुस्तक में  लिखा  है ईसा   अपना शहर  गलील  छोड़कर  एक  काफिले  के साथ  सिंध   होते  हुए  स्वर्ग  यानी  कश्मीर गए , वह उन्होंने " हेमिस -Hemis"   नामके बौद्ध  मठ  में  कुछ  महीने  रह  कर  जैन और  बौद्ध  धर्म  का ज्ञान  प्राप्त  किया और संस्कृत  और  पाली  भाषा भी  सीखी  . यही  नही ईसा मसीह  ने संस्कृत  में अपना  नाम " ईशा " रख  लिया था  ,जो यजुर्वेद  के  मंत्र 40:1  से   लिया  गया  है  जबकि  कुरान   उनक नाम  "  ईसा - (عيسى  "   बताया  गया   है  .नोतोविच ने अपनी  किताब  में ईसा  के बारे में  जो महत्त्वपूर्ण   जानकारी  दी  है  उसके कुछ अंश  दिए  जा रहे  हैं  ,

तब ईसा  चुपचाप अपने पैतृक    नगर यरूशलेम  को छोड़कर एक  व्यापारी  दल के साथ सिंध   की  तरफ  रवाना  हो  गए "4:12
उनका उद्देश्य धर्म  के  वास्तविक  रूप के बारे  में  जिज्ञासा  शांत  करना  , और खुद को परिपक्व   बनाना   था "4:13
फिर  ईसा  सिंध और  पांच  नदियों  को  पार  करके राजपूताना    गए ,वहाँ  उनको जैन  लोग  मिले , जिनके साथ  ईसा ने  प्रार्थना   में  भी  भाग  लिया "5:2
लेकिन  वहाँ   इसा को समाधान   नही  मिला, इसलिए  जैनों   का साथ  छोड़कर  ईसा उड़ीसा  के  जगन्नाथ  मंदिर  गए , वहाँ उन्होंने  भव्य  मूर्ती  के दर्शन   किये  , और काफी  प्रसन्न  हुए "5:3

फिर  वहाँ   के पंडितों   ने उनका आदर  से  स्वागत   किया  , वेदों   की  शिक्षा   देने   के साथ  संस्कृत   भी  सिखायी "5:4
पंडितों   ने  बताया   कि   वैदिक  ज्ञान  से सभी  दुर्गुणों   को   दूर  करके  आत्मशुद्धि    कैसे    हो सकती   है "5:5

फिर  ईसा राजगृह    होते  हुए  बनारस  चले गए  और वहीँ  पर  छह  साल  रह  कर  ज्ञान  प्राप्त  करते  रहे  " 5:6
और जब   ईसा  मसीह    वैदिक  धर्म   का  ज्ञान  प्राप्त   कर  चुके  थे  तो उनकी  आयु  29  साल   हो  गयी  थी  ,  इसलिए   वह  यह  ज्ञान  अपने  लोगों  तक   देने के  लिए   वापिस  यरूशलेम    लौट    गए  ., जहाँ   कुछ   ही  महीनों  के  बाद  यहूदियों   ने     उनपर  झूठे  आरोप     लगा लगा  कर  क्रूस पर  चढ़वा    दिया  था , क्योंकि  ईसा     मनुष्य   को  ईश्वर   का  पुत्र      कहते थ  .

http://reluctant-messenger.com/issa1.htm

3-ईसा मसीह  को  क्रूस  पर चढ़ाना
जब ईसा   मसीह   अज्ञातवास  से  लौट  कर  वापिस  यरूशलेम   आये  तो  उनकी  आयु  लगभग  30  साल    हो  चुकी  थी  .  और बाइबिल  में  ईसा मसीह   के बारे में उसी काल  की  घटनाओं   का  विवरण  मिलता   है  ,  चूँकि  ईसा  मसीह यहूदियों   के  पाखंड     का  विरोध   किया  करते  थे ,   जो  येहूदी पसंद   नही  करते  थे  .  इसलिए  उन्होंने   ईसा  मसीह   को  क्रूस पर  चढ़ा   कर  मौत  की  सजा  दिलवाने की  योजना   बनाई  थी ,ईसा  मसीह   को शुक्रवार 3 अप्रेल  सन  30  को  दोपहर   के समय  चढ़ाया   गया  था  , और  सूरज  ढलने  से  पहले क्रूस  से उनके  शरीर  को उतार  दिया  गया था  ,
  बाइबिल   के अनुसार ईसा    के  क्रूस  पर   जो आरोपपत्र   लगाया   गया   था   वह  तीन  भाषाओं   "  लैटिन  ,ग्रीक  और हिब्रू  "  भाषा  में  था  , जिसमे  लिखा  था  .

(Latin: Iēsus Nazarēnus, Rēx Iūdaeōrum

एसुस नाजारेनुस  रेक्स यूदाओरुम

Greek-  Basileus ton Ioudaion .

Hebrew-ईशु  मिन  नजारेत  मलेक ह यहूदियीम

"ישו מנצרת, מלך היהודים"

अर्थात -नाजरथ  का  ईसा यहूदियों   का  राजा -बाइबिल -यूहन्ना 19 :19

4-ईसा क्रूस   की  मौत  से  नहीं  मरे

बाइबिल  के अनुसार ईसा  को  केवल  6  घंटे  तक  ही  क्रूस  पर  लटका  कर  रखा  गया  था , और  वह जीवित  बच गए  थे  ,  उनके एक शिष्य  थॉमस   ने  तो  उनके  हाथों  में कीलों   के छेदों  में उंगली  डाल  कर  देख  लिया  था   कि वह  कोई  भूत नहीं  बल्कि  सचमुच  ईसा   मसीह  ही  हैं.यह पूरी घटना  बाइबिल की  किताब यूहन्ना  20: 26   से 30  तक  विस्तार  से  दी  गयी   है. बाइबिल   में  यह  भी  बताया  गया   है  कि ईसा बेथनिया  नाम   की   जगह  तक अपने  शिष्यों  के  साथ  गए थे , और उनको आशीर्वाद  देकर स्वर्ग    की  तरफ  चले  गए ,(  बाइबिल - लूका 24:50 )
यद्यपि  बाइबिल  में  ईसा   के  बारे में  इसके  आगे  कुछ  नहीं   लिखा   गया   है  ,  लेकिन   इस्लामी  हदीस " कन्जुल उम्माल- كنج العمّال "  के  भाग  6 पेज 120 में   लिखा है  कि  मरियम    के  पुत्र  ईसा  इस   पृथ्वी  पर   120  साल  तक    जीवित  रहे ,
عيسى ابن مريم عاش لمدة 120 سنة،  "Kanz al Ummal, part 6, p.120
"

5--कुरान  की  साक्षी

और यह लोग  कहते  हैं  कि हमने  मरियम  में बेटे ईसा  मसीह   को  मार डाला ,हालाँकि न तो  इन्होने उसे क़त्ल  किया और  न  सूली  पर  चढ़ाया   ,बल्कि यह  लोग  एक ऐसे  घपले  में  पड़  गए कि  भ्रम  में  पड  गए " सूरा -निसा -4 :157

नोट -इस आयत   की  तफ़सीर में  दिया  है  कि यहूदियों   ने  जिस व्यक्ति  को  क्रूस  पर  चढ़ाया  था वह  कोई  और  ही  व्यक्ति  था  जिसे  लोगों   ने ईसा  मसीह  समझ   लिया  था।

6- ईसा  की अंतिम  भारत यात्रा 

इस्लाम  के  कादियानी  संप्रदाय   के स्थापक  मिर्जा  गुलाम  कादियानी (1835 -1909 )    ने  ईसा मसीह  की  दूसरी  और अंतिम  भारत यात्रा   के बारे में  उर्दू में  एक शोधपूर्ण    किताब  लिखी   है , जिसका नाम " मसीह  हिंदुस्तान   में "  है  . अंगरेजी  में  इसका  नाम  " Jesus in India "  है। इस  किताबों  में अनेकों ठोस  सबूतों   से प्रमाणित  किया  गया  है  कि , ईसा  मसीह क्रूस  की  पीड़ा सहने  के बाद  भी   जिन्दा  बच  गए  थे   . और जब  कुछ दिनों   बाद उनके   हाथों , पैरों  और   बगल    के घाव  ठीक  हो  गए थे  तो  फिर से यरूशलेम  छोड़  कर ईरान  के  नसीबस   शहर   से होते  हुए  अफगानिस्तान    जाकर  रहने   लगे , और   वहाँ  रहने वाले इजराइल   के  बिखरे हुए 12   कबीले  के  लोगों  को उपदेश    देने   का   काम   करते  रहे  . लेकिन अपने जीवन  के अंतिम  सालो   में  ईसा   भारत   के स्वर्ग  यानि  कश्मीर  में  आकर  रहने   लगे  थे  , और 120  साल  की आयु  में उनका  देहांत  कश्मीर  में  ही हुआ , आज  भी  उनका  मजार  श्रीनगर   की  खानयार स्ट्रीट    में  मौजूद   है ,

http://www.alislam.org/library/books/jesus-in-india/intro.html

7-ईसा मसीह कश्मीर में दफ़न है ,
ईसा  मसीह   के समय कश्मीर  ज्ञान  का  केंद्र था,वहाँ  अनेकों  वैदिक   विद्वान्  रहते  थे  . इसीलिये  जीवन  के अंतिम समय   ईसा  कश्मीर  में बस   गए  थे  उनकी  इच्छा   थी  कि  मरने  के बाद  उनको  इसी  पवित्र  में  दफ़न  कर  दिया  जाये  . और ऐसा   ही  हुआ  था  , यह  खबर टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में  दिनांक  8  मई 2010 में  प्रकाशित   हुई  थी  .

"That Jesus survived crucifixion, travelled to Kashmir, eventually died there and is buried in Srinagar ,. Every season hundreds of tourists visit the Rozabal shrine of Sufi saint Yuz Asaf in downtown Srinagar, believed by many to be the final resting place of Christ.

http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2010-05-08/india/28322287_1_srinagar-shrine-jesus

http://www.tombofjesus.com/index.php/en/the-rozabal-tomb/photos

8-वेदों और ईसा  की शिक्षा  में समानता

ईसा मसीह  भारतीय  अध्यात्म  और ज्ञान  से  इतने अधिक प्रभावित थे  कि  छोटी  सी आयु  में  ही   यरूशलेम   छोड़ कर   हजारों   मील  दूर   भारत  आये थे ,  और  यहाँ   ज्ञान   प्राप्त   किया  था.तुलसी दास   जी  ने  कहा  है " एक घड़ी  , आधी घडी  , आधी  में  पुनि आधि , तुलसी संगत  साधु  की  कोटक  मिटे उपाधि " और  ईसा मसीह  तो  भारत   में  छह साल  रहे थे  . इसलिए उनके स्वभाव  और  विचारों   में  मुहम्मद  जैसी  कूरता   और  दूसरे   धर्म   के  लोगों   के  प्रति  इतनी   नफ़रत   नही     थी    , यह   बात   मुहम्मद  , ईसा   मसीह    की   शिक्षा      की  तुलना   करने  से  स्पष्ट    हो  जाता  है     जिसके  संक्षिप्त  में  कुछ  उदाहरण  दिए   जा  रहे   हैं  ,पहले  मुहम्मद   की  शिक्षा   फिर ईसा  मसीह    के वह  वचन   दिए  हैं  ,जो  वेदों   में  दिए   गए   हैं ,

मुहम्म्द -"जान  लो  कि अल्लाह कफिरों  से  प्रेम  नही  करता " सूरा- आले इमरान  3 :32

(Allah hates those who don’t accept Islam. (Qur’an  3:32,)

ईसा  मसीह - ईश्वर  संसार  के  हरेक  व्यक्ति  से  प्रेम रखता   है " बाइबिल -नया  नियम  यूहन्ना 3 :16

(God loves everyone. (John 3:16)

वेद -ईश्वर  हमें  पिता ,माता  और  मित्र  की  तरह  प्रेम  करता  है .ऋगवेद -4 /17 /17

मुहम्म्द -"रसूल  ने कहा   कि मुझे  लोगों से तब तक  लड़ते रहने  का   हुक्म  दिया  गया  है   जब  तक  यह  लोग स्वीकार  नहीं  करते  कि अल्लाह   के आलावा  कोई  भी  इबादत  के योग्य  नहीं  , और  मुहम्मद  उसका रसूल   है  "

(“I have been commanded to fight against people till they testify that there is no god but Allah, and that Muhammad is the messenger ofAllah.”

"‏ أُمِرْتُ أَنْ أُقَاتِلَ النَّاسَ حَتَّى يَشْهَدُوا أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَأَنَّ مُحَمَّدًا رَسُولُ اللَّهِ

सही मुस्लिम -किताब  1  हदीस 33

ईसा  मसीह -"यीशु  ने  कहा  तुम  अपनी  तलवार  मियान  में  ही  रखो। क्योंकि  जो लोग दूसरों  पर तलवार उठाएंगे  वह तलवार   से  ही  मरेंगे "बाइबिल . नया  नियम- मत्ती- अध्याय 26 :52

( “He who lives by the sword will die by the sword” (Matthew 26:52)

वेद -जिस प्रकार द्युलोक  और पृथ्वी  न  तो  किसी  को डराते  हैं ,और न  किसी  से हिंसा  करते  हैं  वैसे  ही मानव  तू  भी  किसी  को  नहीं  डरा  और  न   किसी  पर  हथियार उठा -अथर्ववेद -2/11

http://shariaunveiled.wordpress.com/2013/07/28/the-teachings-of-muhammad-v-jesus-christ/

यह लेख उन  लोगों की ऑंखें   खोलने  के लिए  बानाया   है  ,जो जिहाद यानी   निर्दोषों   की  हत्या     को  ही  असली   धर्म    मान  बैठे   हैं  .  जबकि  उसी  अल्लाह  के रसूल   ईसा   ने हजारों  मील दूर   भारत   से  सच्चे  धर्म  यानी  वैदिक धर्म   का  ज्ञान   बिना   जिहाद  कट्टर  यहूदियों    तक  पहुँचाने का  प्रयास    किया  था  . हम  ईसा   मसीह  के  भारत  प्रेम और   वेदों     पर  निष्ठा   को  नमन  करते  हैं.
लेकिन बड़े दुःख   की  बात  है  कि  इतने  पुख्ता  प्रमाण  होने  पर  भी ईसाई इस सत्य  को स्वीकार   करने   से हिचकिचाते  हैं

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