बुधवार, 1 जनवरी 2014

भारतीय गौरव का प्रतीक विक्रमी संवत्‌

भारतीय गौरव का प्रतीक विक्रमी संवत्‌

वर्ष प्रतिपदा उत्सव अर्थात् नववर्ष हम सबके लिए बहुत महत्व रखता है। हिन्दू समाज पर काले बादलों एवं अत्याचारों की आंधी के रूप में उमड़े शक-हूणों पर विजय प्राप्त करने वाले प्रजापालक, स्वर्णयुग निर्माता न्यायशील, परोपकारी सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की महान विजय के उपलक्ष्य में विक्रमी संवत्‌ का शुभारम्भ हुआ। जन-जन के हृदय में वास करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म (नवमी) एवं राजतिलक दिवस, सेवा मार्ग को प्राणपण से आजीवन निभाने वाले शक्ति के प्रतीक रामभक्त वीर हनुमान जी का जन्मदिवस, सत्य-दया और अहिंसा के अग्रदूत भगवान महावीर का जन्म-दिवस, महान सिख गुरु परम्परा द्वितीय पातशाही श्री गुरु अंगददेव जी का जन्म दिवस, अत्याचारी मुगल शासकों के आतंक एवं अत्याचारों से मुक्त करवाने हेतु हिन्दू समाज को निर्भय बनाने तथा उसकी सुरक्षा के लिए हिन्दू के खड़्‌गहस्त स्वरूप खालसा के सृजनकर्ता श्री गुरु गोविन्दसिंह जी महाराज द्वारा खालसा पंथ की स्थापना, नामधारी सतगुरु बाबा रामसिंह जी द्वारा स्वतन्त्रता के लिए जनजागरण के रूप में कूका आंदोलन का शुभारम्भ, भारत की स्वतन्त्रता के लिए बलिदान होने वाले क्रान्तिकारी वीर सेनानी तात्या टोपे तथा अत्याचारी अंग्रेज को भारत से बाहर निकाल फेंकने का निश्चय लेकर सशस्त्र क्रान्ति करने वाले चाफेकर बन्धुओं का फांसी पर्व, अछूतों को गले लगाने वाले स्वतन्त्रता के उद्‌घोषक पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराने वाले वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि स्वामी दयानन्द जी सरस्वती द्वारा आर्यसमाज की स्थापना, भारत को अद्वितीय संगठन शक्ति देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराम बलिराम हेडगेवार जी का जन्म, स्वतन्त्रता संग्राम में जूझ रहे जलियांवाला बाग के असंख्य बलिदानी वीर जलियांवाला बाग कांड के सूत्रधार क्रूर डायर को ठिकाने लगाने वाले शहीद उधम सिंह की प्रेरक स्मृति नवरात्रों में पूजा योग्य मॉं दुर्गा, मॉं काली, मॉं अन्नपूर्णा देवी एवं ज्ञानदायिनी, वीणावादिनी मॉं सरस्वती की वन्दना यह सब इस कालखण्ड की उपलब्धियां एवं प्रेरणाएं हैं।

पाश्चात्य संस्कारों का प्रभाव क्यों? इन इक्कीस दिनों की छोटी-सी अवधि में घटित यह सारे पर्व सामने आने के बाद हम स्वतन्त्र भारतवासी यह अनुभव कर सकते हैं कि भारतीय नववर्ष के प्रथम तीन सप्ताह हमारे राष्ट्र जीवन में कितना महत्व लिए हुए हैं। हम भारतीयों ने पाश्चात्य सभ्यता में रंगकर ऐसा लगता है, जैसे हमने स्वत्व ही खो दिया हो। विश्व में अपनी भी एक विशिष्ट पहचान है, अपना भी कोई विशिष्ट राष्ट्र है और राष्ट्र जीवन है, अपना भी कोई संवत्‌-वर्ष है। यह सब हम भूल गए से लगते हैं।

आज हमने ईसवी सन्‌ को ही अपने दैनन्दिन आचरण में मान्यता दे डाली है। जबकि अपना विक्रमी संवत्‌, जो कि ईसवी सन की अपेक्षा कहीं अधिक श्रेष्ठता, प्राचीनता एवं विशिष्टता लिए हुए है तथा शास्त्रसम्मत और वैज्ञानिक आधार पर आधारित है।

प्रेरणा- हर नया वर्ष हर प्राणी के जीवन में और प्रत्येक समाज के जीवन में नई उमंग व कल्पनाएं लेकर उतरता है। लेकिन यदि उक्त पर्व के साथ अपनापन न हो, तो प्रेरणा मृतप्राय हो
जाती है।

ईस्वी सन जब प्रथम जनवरी से शुरू होता है,तो उसमें हम भारतीयों के लिए उत्साह एवं प्रेरणा देने के लिए क्या है? हम भारतीयों का अपना एक संवत्‌ है, जिसे हम विक्रमी संवत्‌ कहते हैं और इस संवत्‌ के साथ अनेक महान शानदार प्रेरक घटनाएँ एवं महापुरुष जुड़े हुए हैं। उन प्रेरक घटनाओं एवं अनेक महापुरुषों, विशिष्ट पुरुषों के जन्म दिवस इस विक्रमी संवत्‌ के साथ जुड़े होने के कारण इसका महात्म्य प्रकट होता है। उस पर हम सब भारतीय लोग गर्व कर सकते हैं। विश्वभर में यह पता चलना चाहिए कि भारतीयों का भी कोई अपना संवत्‌ है तथा इस संवत का नाम विक्रमी संवत्‌ है।

नववर्ष उत्सव कैसे मनाएं- चैत्र प्रतिपदा की प्रभात में सूर्योदय से एक घंटा पूर्व जागकर नित्यकर्म से निवृत्त हो अपने माता-पिता एवं गुरुजनों को प्रणाम कर आशीर्वाद ले। अपने इष्टदेवों की पूजा-अर्चना कर वातावरण शुद्धि के लिए हवन-यज्ञ धूप-दीप करके घट स्थापना करें और शक्ति अनुसार दान-पुण्य कर प्रसाद वितरण के साथ अधिकाधिक लोगों को नववर्ष की बधाई दें। अपने घरों, दुकानों, कार्यालयों को महापुरुषों के चित्रों से सुसज्जित कर भारतीय संस्कृति के प्रतीक भगवां ध्वज फहराएं। सम्भव हो तो सामूहिक स्तर पर उत्सव आयोजित कर संगीत, भजन, कीर्तन अथवा वीरगाथाओं का स्मरण करें।

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