मंगलवार, 28 जनवरी 2014

मोहनदास करमचंद गाँधी एक स्वाधीनता सेनानी नहीं वरण वीर इंग्लिश सैनिक था

मोहनदास करमचंद गाँधी एक स्वाधीनता सेनानी नहीं वरण वीर इंग्लिश सैनिक था

बोअर युद्ध १८९९ दक्षिण अफ्रिका
क्या आप इस सैनिक को जानते है! क्या? आपने नही पहचाना?
अरे ये तो वो है जिनका जन्म दिवस आप आज मना रहे है! आप जानते है इनकी महानता इन्होने भारत वासीयो के मनमे अंग्रेजो के प्रती अहिंसा की भावना निर्माण की! क्या आप जानते है इनको?
ये बड़े महान अहिसवादी थे! इन्होने जिस बोअर युद्ध में (१८९९) एक अहिंसक (?) सैनिक का कार्य किया था वो अद्वितीय है! अंग्रेज और दक्षिण अफ्रिका के बोअर गण राज्यों में जो भयानक युद्ध १८९९ में हुआ वह कुविख्यत है अंग्रेजो के अत्याचारों के लिए! इस युद्ध में अंग्रजो की सारे विश्व भर में निर्भात्सना हुई, क्यों की अंग्रेजी सैनिको ने युद्ध में अगणित अफ़्रीकी प्रजाजनों को मृत्यु के घाट उतार दिया, उनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार करके उन्ही क़त्ल कर दिया! अंग्रेजो की इस बदनाम सेना में ये अहिंसावादी क्या कर रहे थे? अब ये अहिंसात्मक लढाई थी? सब कुछ क्या बताना पड़ेगा? समझदार के लिए एक संकेत ही बहुत है!
और एक महत्वपूर्ण बात सुनिए! ये चित्र भारत सरकार द्वारा संचालित सैनिक समाचार नामक पत्रिका में प्रसारित हुए है! जब इस चित्रों को देख के बवाल खड़ा हुआ तो लोगों को मुर्ख बनाने के लिए एक कुतर्क दिया गया! ये महात्मा युद्ध में अहिंसक सैनिक थे! जो युद्ध फसे घायल अंग्रेजी सैनिको को युद्ध भूमि से बाहर निकलते थे! आप सोचिए सैनिक फिर वो कोई भी कार्य करता हो चाहे धोबी का या रसोइये का कभी अहिंसक होता है?
ये महान आत्मा महात्माजी गांधीजी, केवल अंग्रेजो के अब्युलंस कोर्प नामक टुकड़ी के लिए सेवा नहीं दे रहे थे! किन्तु इन्होने युद्ध में अंग्रजो की सहायता करने के लिए एक स्वतंत्र सेना स्वयसेवको की टुकड़ी खड़ी की थी! युद्ध काल में इस निस्पृह सेवा से प्रसन्न हो कर अंग्रेज सरकार ने महान आत्मा महात्माजी गाँधीजी को कैसर-ए-हिंद का पुरस्कार दिया था! क्या आप जानते है ये क्या पुरस्कार है! ये पुरस्कार उस समय का अंग्रेजो का सर्वोच्च पुरस्कार था मानो परमवीर चक्र!!!!!
फिर आप कहोगे की गांधीजीने अंग्रजो के विरोध में अपना पहला आन्दोलन तो दक्षिण अफ्रिका में किये था, फिर ये अंग्रेजो की सेना में क्या कर रहे है! तो वो ये बात है की १९४७ के उपरांत किस की सत्ता भारत में आई? और एसी पक्षपाती सत्ता के चलते ये सब लोगों के सामने आ सकता है क्या? पर वो बेचारे ये क्या जानते थे के आगे चल कर इंटरनेट का अविष्कार होगा और फेस बुक चलेगी!
हमें बताया ये गया के अंग्रेजो ने हमरे भगवान स्वरूप महात्माजी का अपमान किया, उनके पास १ श्रेणी के रेल डिब्बे की टिकिट होने के उपरांत उन्हें अपमान पूर्वक उतारा गया! महात्माजी के भीतर इस अपमान से स्वाभिमान जागा और उन्होंने अहिंसा और असहकार की लड़ाई अंग्रजो के विरुद्ध छेद दी! एक मिनिट रुकिय क्या आप जानते है जिस समय ये घटना घटी ऐसा हमे बताया जाता है, उस समय दक्षिण अफ्रिका में अंग्रजी शासन था और वहा की रेलवे में केवल गोरो को प्रवेश था जिसका अरक्ष्ण लन्दन से किया जाता था! जब प्रथम श्रेणी गोरो के लिए आरक्षित होती थी तो हमारे महात्माजी के पास उसकी टिकिट आयी कैसे? ये मूल भुत प्रश्न उठता है!
कुछ इतिहासकारो का कहना है की ये घटना काल्पनिक है और भारत में क्रांति की अग्नि को दबाने के लिए अंग्रेज सुरक्षा छिद्र (सेफ्टी वाल्व) का निर्माण करना चाहते थे! ये घटना उसी की कड़ी है! ६५ बरसो तक हम ठगे गए अब समय है इसे शेअर करके जागने का!
सन्दर्भ:
http://en.wikipedia.org/wiki/File:Gandhi_Boer_War_1899.jpg
http://en.wikipedia.org/wiki/Second_Boer_War
http://en.wikipedia.org/wiki/Gandhi_Under_Cross_Examination
http://en.wikipedia.org/wiki/Gandhi_Behind_the_Mask_of_Divinity

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