रविवार, 9 नवंबर 2014

इस्लामी सेकुलर आतंकवाद !

इस्लामी सेकुलर आतंकवाद !


 मुसलमानों के वोटबैंक पर नजर रखने वाले धूर्त और सत्तालोभी नेता खुद को धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रभक्त नेताओं को सम्प्रदायवादी साबित करने में लगे रहते हैं . और इनका मुख्य निशाना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं . यदि कांगरेस या जे डी यू और कम्युनिस्ट ऐसा कहते हैं तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है लेकिन जब मुसलमान नेता भी धर्मनिरपेक्षता की वकालत करते है , तो हमें उनकी नीयत पर शंका होती है .क्योंकि कुरान या हदीस में न तो धर्मनिरपेक्ष शब्द मिलता है . और न इस शब्द का आशय प्रकट करने के लिए कोई परिभाषा ही मिलती है .अरबी में ” धर्मनिरपेक्ष ” के लिए “ला मजहबियत ” शब्द है . जिसका सही अर्थ है किसी धर्म को नहीं मानना .चूँकि धर्म का अर्थ ईमान भी होता है .और नेताओं का कोई ईमान नहीं होता यह सब जानते हैं . इसी लिए यह लोग खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं .जब से सविधान में “धर्मनिरपेक्ष ” शब्द जोड़ा गया है तब से ही मुस्लिम नेताओं ने हिन्दू विरोध को ही ” धर्मनिरपेक्षता ”मान लिया है .वह कांगरेस का सहारा लेकर हिन्दुओं को प्रताड़ित करने ,उनमे फुट डालने ,हिन्दू युवा लडके लड़कियों को गुमराह करने का हर प्रकार का प्रयत्न करते रहते हैं .जो मुसलमानों के इतिहास से सिद्ध होता है .मुस्लमान न तो कभी धर्मनिरपेक्ष थे , और न आज है और न कभी होंगे . वास्तव में मुस्लिम नेता “धर्मनिरपेक्षता ” की आड़ में ” इस्लामी सेकुलर आतंकवाद ” फैला रहे हैं

1-मुसलमान और धर्मनिरपेक्षता

जो मुसलमान और धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते रहते हैं ,क्या वह इन तथ्यों से इनकार कर सकते हैं कि इसलाम प्रेम से नहीं अत्याचार से फैला है .किसी भी मुस्लिम शासक ने हिन्दुओं के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया .
यह संसार का अद्‌भुत आद्गचर्य ही है कि इस्लाम के जिस आतंक से पूरा मध्य पूर्व और मध्य एशिया कुछ दशाब्दियों में ही मुसलमान हो गया वह 1000 वर्ष तक पूरा बल लगाकर भारत की आबादी के केवल 1/5 भाग ही धर्म परिवर्तन कर सका।
इन बलात्‌ धर्म परिवर्तित लोगों में कुछ ऐसे भी थे जो अपनी संतानों के नाम एक लिखित अथवा अलिखित पैगाम छोड़ गये-‘हमने स्वेच्छा से
अपने धर्म का त्याग नहीं किया है” यदि कभी ऐसा समय आवे जब तुम फिर अपने धर्म में वापिस जा सको तो देर मत लगाना। हमारे ऊपर किये गये अत्याचारों को भी भुलाना मत।’
बताया जाता है कि जम्मू में तो एक ऐसा परिवार है जिसके पास ताम्र पत्र पर खुदा यह पैगाम आज भी सुरक्षित है। किन्तु हिन्दू समाज उन लाखों उत्पीड़ित लोगों की आत्माओं की आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहा है। काद्गमीर के ब्रहाम्णों जैसे अनेक दृष्टांत है जहाँ हिन्दूओं ने उन पूर्वकाल के बलात्‌ धर्मान्तरित बंधुओं के वंशजों को लेने के प्रश्न पर आत्म हत्या करने की भी धमकी दे डाली और उनकी वापसी असंभव बना दी और हमारे इस धर्मनिरपेक्ष शासन को तो देखो जो मुस्लिम शासकों के इन कुकृत्यों को छिपाना और झुठलाना एक राष्ट्रीय कर्तव्य समझता है.

2-विश्नोई संप्रदाय का उदाहरण

राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विश्नोई संप्रदाय के अनेक परिवार रहते हैं। इस सम्प्रदाय के लोगों की धार्मिक प्रतिबद्धता है कि हरे वृक्ष न काटे जाये और किसी भी जीवधारी का वध न किया जाये। राजस्थान में इस प्रकार की अनेक घटनाएँ हैं, जब एक-एक वृक्ष को काटने से बचाने के लिये पूरा परिवार बलिदान हो गया।सऊदी अरब के कुछ आगुन्तकों को ग्रेट बस्टर्ड नामक पक्षी का राजस्थान में शिकार करने की जब भारत सरकार द्वारा अनुमति दी गई तो इन विद्गनोइयों के तीव्र विरोध के कारण यह प्रोग्राम रद्‌द हो गया था। वह विद्गनोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत जाम्भी जी की समाधि पर बनी छतरी पर मुस्लिम काल में लोधी मुस्लिम सुल्तानों द्वारा अधिकार कर लिया गया था। अकबर जैसे उदार बादशाह से जब फरियाद की गई तो उसने भी इन पाँच शर्तों पर यह छतरी विश्नोई सम्प्रदाय को वापिस की थी .
1. मुर्दा गाड़ो,
2. चोटी न रखो,
3. जनेऊ धारण न करो,
4. दाढ़ी रखो,
5. विष्णु के नाम लेते समय विस्मिल्लाह बोलो
विश्नोइयोँ ने मजबूरी की दशा में यह सब स्वीकार कर लिया। धीरे-धीरे जैसा कि अकबर को अभिष्ट था, विश्नोई दो तीन सौ वर्ष में मुसलमान अधिक, हिन्दू कम दिखाई देने लगे। हिन्दुओं के लिये वह अछूत हो गये। परन्तु उन्होंने अपनी मजबूरी को भुलाया नहीं। आर्य समाज के जन्म के तुरंत बाद ही उन्होंने उसे अपना लिया। बिजनौर जनपद के मौहम्मदपुर देवमल ग्राम के द्गोख परिवार और नगीना के विश्नोई सराय के विश्नोई इसके उदाहरणहैं।
प्रो. मौहम्मद हबीब के अनुसार 1330 ई. में मंगोलों ने आक्रमण किया। पूरी काद्गमीर घाटी में उन्होंने आग लगाने बलात्कार और कत्ल करने जैसे कार्य किये। राजा और ब्राहम्ण तो भाग गये। परन्तु साधारण नागरिक, जो रह गये, दूसरा कोई विकल्प न देखकर धीरे-धीरे मुसलमान हो गये.
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इस प्रकार युद्ध से कैदी प्राप्त होते थे। कैदी गुलाम और फिर मुसलमान बना लिये जाते थे। नये मुसलमान दूसरे हिन्दुओं की लूट, बलात्कार और बलात्‌ धर्मान्तरण में उत्साहपूर्वक लग जाते थे क्योंकि वह अपने समाज द्वारा घृणित समझे जाने लगते थे।
मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा दी गई उपरोक्त घटनाओं के विवरण को पढ़कर जिनके अनेक बार वे प्रत्यक्ष दर्शी थे, किसी भी मनुष्य का मन अपने अभागे हिन्दू पूर्वजों के प्रति द्रवित होकर करुणा से भर जाना स्वाभाविक है.

3-अत्याचारी औरंगजेब

इस बात से कोई भी व्यक्ति इंकार नहीं कर सकता कि इस्लाम की शिक्षा के कारण ही मुसलमान क्रूर , अत्याचारी और हिंसक हो जाते हैं , और उनके दिमाग में गैर मुस्लिमों के प्रति नफ़रत कूट कूट कर भरी होती है .इसीलिए जब भी भारत में कहीं भी कोई मुस्लिम शासक हुआ है .उसने हिन्दुओं पर अत्याचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी .ऐसे शासकों के बारे में कई किताबें लिखी जा सकती हैं . लेकिन औरंगजेब को मुसलमान ” गाजी ” यानि धर्मयोद्धा ” मानते हैं ,इसलिए उसके अत्याचार के कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं .
औरंगजेब जन्म गुजरात के दोहद नामकी जगह में 4 नवम्बर 1 6 1 8 में हुआ था .इसका पूरा नाम “अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर: ابو المظفر محي الدين محمد اورنگزیب عالمگیر” था .गद्दी पर बैठने के बाद इसने अपने नाम में यह उपाधि लगा ली “सुल्तानुल आजम अल खाकान अल मुकर्रम हजरत अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर पादशाह गाजी: السلطان الاعظم والخقان المكرم حضرت ابو المظفر محي الدين محمد اورنگزیب بہادر عالمگیر پادشاہ غازی”गाजी का अर्थ धर्मयोद्धा होता है . यानि ऐसा व्यक्ति जिसने गैर मुस्लिमों को हरा दिया हो .औरंगजेब खुद को हिन्दुओं और मुगलों का शहंशाह मानता था . इसलिए उसने यह उपाधि भी जोड़ ली “शहंशाहे सल्तनते अल हिंदिया वल मुगलिया: شاہنشاہ سلطنت الہنديہ والمغليہ”औरंगजेब के गद्‌दी पर आते ही लोभ और बल प्रयोग द्वारा धर्मान्तरण ने भीषण रूप धारण किया। अप्रैल 1667 में चार हिन्दू कानूनगो बरखास्त किये गये। मुसलमान हो जाने पर वापिस ले लिये गये। औरंगजेब की घोषित नीति थी ‘कानूनगो बशर्ते इस्लाम’ अर्थात्‌ मुसलमान बनने पर कानूनगोई.

पंजाब से बंगाल तक, अनेक मुस्लिम परिवारों में ऐसे नियुक्ति पत्र अब भी विद्यमान हैं जिनसे यह नीति स्पष्ट सिद्ध होती है। नियुक्तियों और पदोन्नतियों दोनों के द्वारा इस्लाम स्वीकार करने का प्रलोभन दिया जाता था।.

अनेक लोग, जो मुसलमान बनने को तैयार नहीं हुए, नौकरी से निकाल दिये गये। नामदेव को इस्लाम ग्रहण करने पर 400 का कमाण्डर बना दिया गया और अमरोहे के राजा किशनदास के पोते द्गिावसिंह को इस्लाम स्वीकार करने पर इम्तियाज गढ़ का मुशरिफ बना दिया गया। ‘समाचार पत्रों में नेकराम के धर्मान्तरण का जो राजा बना दिया गया और दिलावर का, जो 10000 का कमाण्डर बना दिया गया का वर्णन है।(17) के.एस. लालK.S.Lal “अपनी पुस्तक ‘इंडियन मुस्लिम व्हू आर दे': Indian Mislims who are they “में अनेकों उदाहरण देकर सिद्ध करते हैं कि इस प्रकार के लोभ के कारण और जिजिया कर से बचने के लिये बड़ी संखया में हिन्दुओं का धर्मान्तरण हुआ।
मराठों के जंजीरा के दुर्ग को जीतने के बाद सिद्‌दी याकूब ने उसके अंदर की सेना को सुरक्षा का वचन दिया था। 700 व्यक्ति जब बाहर आ गये तो उसने सब पुरुषों को कत्ल कर दिया। परन्तु स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाकर उनके मुसलमान बनने पर मजबूर किया.

4-हिन्दू लड़कियों का अपहरण

अय्याशी के बिना इस्लाम अधुरा होता है .और इसके लिए लड़कियों की जरुरत होती है .आज भी जताने भी बलात्कार और अपहरण हो रहे है . अधिकांश में मुसलमान दोषी पाए गए हैं .यह परम्परा आज भी चल रही है . क्योंकि कुरान में जिहादियों को जन्नत में औरतें देने का वायदा किया गया है . यही काम औरंगजेब ने किया था .
हिन्दू गृहस्थों और रजवाड़ों की लड़कियाँ, किस प्रकार बलात्‌ उठाकर गुलाम रखैल बना ली जाती थी, उसका एक उदाहरण मनुक्की की आँखों देखा अनुभव है। वह नाचने वाली लड़कियों की एक लम्बी सूची देता है जैसे – हीरा बाई, सुन्दर बाई, नैन ज्योति बाई, चंचल बाई, अफसरा बाई, खुशहाल बाई, केसा बाई, गुलाल, चम्पा, चमेली, एलौनी, मधुमति, कोयल, मेंहदी, मोती, किशमिश, पिस्ता, इत्यादि। वह कहता है कि ये सभी नाम हिन्दू हैं और साधारणतया वे हिन्दू हैं जिनको बचपन में विद्रोही हिन्दू राजाओं के घरानों में से बलात उठा लिया गया था। नाम हिन्दू जरूर है, अब पर वे सब मुसलमान हैं।(97 )

5-मठ मंदिर तुडवाये

औरंगजेब ने खुद को असली गाजी साबित करने के लिए जिन मंदिरों , पाठशालाओं . और धर्म स्थलों का ध्वंस किया उनकी सूची काफी बड़ी है . जिन में से कुछ प्रसिद्द मंदिरों के नाम इस प्रकार हैं .
1.सन्‌ 1648 ई. में मीर जुमला को कूच बिहार भेजा गया। उसने वहाँ के तमाम मंदिरों को तोड़कर उनके स्थान पर मस्जिदें बना दी।(102)
2.सन्‌ 1666 ई. में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा में दारा द्वारा लगाई गई पत्थर की जाली हटाने का आदेश दिया-‘इस्लाम में मंदिर को देखना भी पाप है और इस दारा ने मंदिर में जाली लगवाई?'(103)
3.सन्‌ 1669 ई. में ठट्‌टा, मुल्तान और बनारस में पाठशालाएँ और मंदिर तोड़ने के आदेश दिये। काशी में विद्गवनाथ का मंदिर तोड़ा गया और उसके स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया।(104)
4 .सन्‌ 1670 ई. में कृष्णजन्मभूमि मंदिर, मथुरा, तोड़ा गया। उस पर मस्जिद बनाई गई। मूर्तियाँ जहाँनारा मस्जिद, आगरा, की सीढ़ियों पर बिछा दी गई।(105
5.सोरों में रामचंद्र जी का मंदिर, गोंडा में देवी पाटन का मंदिर, उज्जैन के समस्त मंदिर, मेदनीपुर बंगाल के समस्त मंदिर, तोड़े गये।(106)
6. सन्‌ 1672 ई. में हजारों सतनामी कत्ल कर दिये गये। गुरु तेग बहादुर का काद्गमीर के ब्राहम्णों के बलात्‌ धर्म परिवर्तन का विरोध करने के कारण वध करवाया गया।(107)
7.सन्‌ 1679 ई. में हिन्दुओं पर जिजिया कर फिर लगा दिया गया जो अकबर ने माफ़ कर दिया था। दिल्ली में जिजिया के विरोध में प्रार्थना करने वालों को हाथी से कुचलवाया गया। खंडेला में मंदिर तुड़वाये गये।(108)
8.जोधपुर से मंदिरों की टूटी मूर्तियों से भरी कई गाड़ियाँ दिल्ली लाई गईं और उनको मस्जिदों की सीढ़ियों पर बिछाने के आदेश दिये गये।(109)
9.सन्‌ 1680 ई. में ‘उदयपुर के मंदिरों को नष्ट किया गया। 172 मंदिरों को तोड़ने की सूचना दरबार में आई। 62 मंदिर चित्तौड़ में तोड़े गये। 66 मंदिर अम्बेर में तोड़े गये। सोमेद्गवर का मंदिर मेवाड़ में तोड़ा गया। सतारा में खांडेराव का मंदिर तुड़वाया गया।'(110)
10.सन्‌ 1690 ई. में एलौरा, त्रयम्वकेद्गवर, नरसिंहपुर एवं पंढारपुर के मंदिर तुड़वाये गये।(111)
11.सन्‌ 1698 ई. में बीजापुर के मंदिर ध्वस्त किये गये। उन पर मस्जिदें बनाई गई।(112)

6-इस्लाम की दोगली धर्मनिरपेक्षता

जब मुस्लिम बादशाह बलपूर्वक भारत के सभी हिन्दुओं को मुसलमान नहीं बना सके तो उन्होंने हिन्दुओं को इस्लाम के प्रति आकर्षित करने के लिए एक नयी तरकीब निकाली . सब जानते हैं कि इस्लाम में शायरी , हराम है , क्योंकि जब मुहम्मद साहब ने खुद को अल्लाह का रसूल घोषित कर दिया था तो अरब के लोग कुरान को मुहम्मद की शायरी कहते थे . और अरब के शायर कुरान का मजाक उड़ाते थे . इसी तरह इस्लाम में संगीत , गाना बजाना,वाद्ययंत्रों का प्रयोग करना भी हराम है ,क्योंकि यह हिदू धर्म में भजन कीर्तन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है . इसलिए चालाक मुसलमानों ने सोचा कि यदि संगीत के माध्यम से हिन्दुओं में इस्लाम के प्रति रूचि पैदा की जाये तो उनका धर्म परिवर्तन करना सरल होगा .इसका परिणाम यह हुआ कि कुछ हिन्दुओं ने तो मुसलमानों के आचार विचार , खानपान अपना लिए , लेकिन मुसलमान हिन्दुओं से हमेशा दूरी बनाये रखे. फिर मुसलमानों ने एक ऐसी कृत्रिम वर्णसंकर “धर्मनिरपेक्षता ” तहजीब बना डाली , जिसका नाम गंगाजमुनी तहजीब रख दिया . इसे हिन्दू मुस्लिम एकता ,प्रतीक बता दिया ,बाद में मुसलमानों और दोगले हिन्दुओं ने इसका नाम “धर्मनिरपेक्षता ” का नाम दे दिया .मुस्लिम शासकों ने तो हिन्दुओं की खतना करा कर मुस्लमान बना दिया था . लेकिन इस “धर्मनिरपेक्षता ” ने हिन्दुओं की खस्सी कर दी . जिस से उनमे अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने की शक्ति समाप्त हो गयी .इसमे संगीत का भी बड़ा योगदान है ,जिसे” सूफी संगीत “कहा जाता है .मूर्ख हिन्दू अरबी फारसी जाने बिना ही इस संगीत को एकता का मानते हैं . भारत में इसे कव्वाली भी कहा जाता है .जिसका अविष्कार अमीर खुसरो ने किया था जो कट्टर हिन्दू विरोधी था .

7-अमीर खुसरो की धर्मनिरपेक्षता ?

इसका पूरा नाम “अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरौ : ابوالحسن یمین‌الدین خسرو‎” था .इसका जन्म सन 1253 में उत्तर प्रदेश के शहर बदायूँ में हुआ था .इसके पिता का नाम अमीर सैफुद्दीन था . जो ईरान के बलख शहर से भारत में सैनिक बनने के लिए आया था .अमीर खसरो को संगीत शायरी का शौक था ,लोग उसे “अमीर ख़ुसरौ दहलवी :امیر خسرو دہلوی “भी कहते थे .बड़े दुःख की बात है कि जो लोग खसरो की बनायीं गजलों को सुन कर झुमने लगते हैं . और उसी को हिन्दू मुस्लिम एकता का साधन बताते हैं , वह नहीं जानते कि खुसरो संगीत से एकता नहीं नफ़रत फैलाता था . और एक क्षद्म जिहादी था , हमारे धर्मनिरपेक्ष शासकों द्वारा बहुधा प्रशंसित धर्मनिरपेक्ष अमीर खुसरो अपनी मसनवी” Qiranus-Sa’dain ” में लिखता है-

जहां रा कि दीदम ईँ रस्म पेश ,
कि हिन्दू बुवद सैदे तुर्कां हमेश .1
अज बेहतरे निस्बते तुर्को हिन्दू ,
कि तुर्क अस्त चूँ शेर हिन्दू चूं आहू .2
जि रस्मे कि रफ्त अस्त चर्खे र वाँ रा ,
वुजूद अज पये तुर्क शुद हिंदुआं रा .3
कि तुर्क अस्त ग़ालिब बर ईशां चूँ कोशद ,
कि हम गीरद हम खरद औ हम फ़रोशद .4
अर्थात्‌ ‘संसार का यह नियम अनादिकाल से चला आ रहा है कि हिन्दू सदा तुर्कों का अधीन रहा है. 1
तुर्क और हिन्दू का संबंध इससे बेहतर नहीं कहा जा सकता है कि तुर्क सिंह के समान है और हिन्दू हिरन के समान.2
आकाश की गर्दिश से यह परम्परा बनी हुई है कि हिन्दुओं का अस्तित्व तुर्कों के लिये ही है. 3

क्योंकि तुर्क हमेशा गालिब होता है और यदि वह जरा भी प्रयत्न करें तो हिन्दू को जब चाहे पकड़े, खरीदे या बेचे।’ 4

अब हिन्दू समाज को खास तौर पर युवकों को गंभीरता से सोचना चाहिए कि वह सेकुलर बनकर इस्लाम के सेकुलर आतंकवाद के जाल में तो नहीं फसते जा रहे हैं . या सेकुलर बन कर गांधी , और अन्ना जैसे कायर बनना पसंद करेंगे जो भूख से मर जाने को ही हर समस्या का हल बताता है . या आप गुरु गोविन्द सिंह , शिवाजी , बोस , आजाद और ऊधम सिंह जैसे धार्मिक बनना पसंद करंगे और हाथ फ़ैलाने की जगह अपने अधिकार छीन लेंगे .और ईंट का जवाब पत्थर से देंगे .

याद रखिये धर्मनिरपेक्षता जिहाद का ही एक रूप है .


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